रामकथा के प्रतिनायक रावण में बहुत से श्रेष्ठ गुण होते हुये भी उसका एक आचरण, उसका एक दोष उसकी सारी अच्छाइयें पर पानी फेर जाता है और उसे सबके रोष और वितृष्णा का पात्र बना देता है. यदि उस पर पर-नारी में रत रहने और सबसे बढ़कर सीता हरण का दोष न होता तो रावण के चरित्र का स्वरूप ही बदल जाता. वास्तवकता यह है कि सीता रावण की पुत्री थी और सीता स्वयंवर से पहले ही वह इस तथ्य से अवगत था.
बाल्मीकि रामायण ( अरण्य कांड , सर्ग 47 , ‘लोक 4,10,11 ) के अनुसार विवाह के समय माता सीता जी की आयु मात्र 6 वर्ष थी ।
सीता रावण से कहती हैं कि
‘जब मै अज्ञान से अपनी कन्या के ही स्वीकार की इच्छा करूं तब मेरी मृत्यु हो.”
-अद्भुत रामायण 8-12.
रावण की इस स्वीकारोक्ति के अनुसार सीता रावण की पुत्री सिद्ध होती है.अद्धुतरामायण मे ही सीता के आविर्भाव की कथा इस कथन की पुष्टि करती है -
दण्डकारण्य मे गृत्स्मद नामक ब्राह्मण, लक्ष्मी को पुत्री रूप मे पाने की कामना से, प्रतिदिन एक कलश मे कुश के अग्र भाग से मंत्रोच्चारण के साथ दूध की बूँदें डालता था (देवों और असुरों की प्रतिद्वंद्विता शत्रुता में परिणत हो चुकी थी. वे एक दूसरे से आशंकित और भयभीत रहते थे. उत्तरी भारत मे देव-संस्कृति की प्रधानता थी. ऋषि-मुनि असुरों के विनाश हेतु राजाओं को प्रेरित करते थे और य़ज्ञ आदि आयोजनो मे एकत्र होकर अपनी संस्कृति के विरोधियों को शक्तिहीन करने के उपाय खोजते थे.ऋषियों के आयोजनो की भनक उनके प्रतिद्वंद्वियों के कानों मे पडती रहती थी,परिणामस्वरूप पारस्परिक विद्वेष और बढ जाता था).एक दिन उसकी अनुपस्थिति मे रावण वहाँ पहुँचा और ऋषियों को तेजहत करने के लिये उन्हें घायल कर उनका रक्त उसी कलश मे एकत्र कर लंका ले गया.कलश को उसने मंदोदरी के संरक्षण मे दे दिया-यह कह कर कि यह तीक्ष्ण विष है,सावधानी से रखे.
कुछ समय पश्चात् रावण विहार करने सह्याद्रि पर्वत पर चला गया.रावण की उपेक्षा से खिन्न होकर मन्दोदरी ने मृत्यु के वरण हेतु उस कलश का पदार्थ पी लिया.लक्ष्मी के आधारभूत दूध से मिश्रित होने के कारण उसका प्रभाव पडा.मन्दोदरी मे गर्भ के लक्षण प्रकट होने लगे. अनिष्ठ की आशंकाओं से भीत मंदोदरी ने,कुरुश्क्षेत्र जाकर उस भ्रूण को धरती मे गाड दिया और सरस्वती नदी मे स्नान कर चली आई.
हिन्दी के प्रथम थिसारस(अरविन्द कुमार और कुसुम कुमार द्वारा रचित) मे भी सीता को रावण की पुत्री के रूप मे मान्यता मिली है.
अद्भुतरामायण मे सीता को सर्वोपरि शक्ति बताया गया है,जिसके बिना राम कुछ करने मे असमर्थ हेंदो अन्य प्रसंग भी इसी की पुष्टि करते हैं –
(1) रावण-वध के बाद जब चारों दिशाओं से ऋषिगण राम का अभिनन्दन करने आये तो उनकी प्रशंसा करते हुये कहाकि सीतादेवी ने महान् दुख प्राप्त किया है यही स्मरण कर हमारा चित्त उद्वेलित है.सीता हँस पडीं,बोलीं,”हे मुनियों,आपने रावण-वध के प्रति जो कहा वह प्रशंसा परिहास कहलाती है.—— किन्तु उसका वध कुछ प्रशंसा के योग्य नही.”इसके पश्चात् सीता ने सहस्रमुख-रावण का वृत्तान्त सुनाया.अपने शौर्य को प्रमाणित करने के लिये,राम अपने सहयोगियों और सीता सहित पुष्पक मे बैठकर उसे जीतने चले.
सीता रावण से कहती हैं कि
‘ मैं 12 वर्ष ससुराल में रही हूं । अब मेरी आयु 18 वर्ष है और राम की 25 वर्ष है । ‘
इस तरह विवाहित जीवन के 12 वर्ष घटाने पर विवाह के समय श्री रामचन्द्र जी व सीता जी की आयु क्रमशः 13 वर्ष व 6 वर्ष बनती है ।
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