Thursday 15 December 2011

मुस्लिम आरक्षण का मायाजाल

हाल ही में जमीयत उलमा-ए-हिंद के नेतृत्व में कई मुस्लिम संगठनों का एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिला. प्रतिनिधिमंडल ने दोनों को अपनी लंबी-चौड़ी मांगों का पुलिंदा सौंपा. प्रमुख मांग मुसलमानों को आरक्षण देने की है. साथ ही इसमें रंगनाथ मिश्र आयोग की स़िफारिशें लागू करने की मांग भी शामिल है. मुलाक़ात के बाद जमीयत के स्वयंभू अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री ने मुसलमानों को आरक्षण देने के बारे में जल्द ही कोई ठोस फैसला करने का भरोसा दिया है. इस दावे के  बारे में अभी तक न तो प्रधानमंत्री की तरफ़ से कुछ कहा गया है और न ही सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी की तरफ़ से.
पहली नज़र में यह दावा सरासर झूठा और गुमराह करने वाला लगता है. बुनियादी तौर पर हमारा संविधान धार्मिक आधार पर आरक्षण की इजाज़त नहीं देता. अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान ख़ुर्शीद भी खुले तौर पर यह बात पहले ही कह चुके हैं कि तमाम मुसलमानों को पिछड़ा घोषित करके उन्हें आरक्षण देने के  लिए लाए गए आंध्र प्रदेश सरकार के विधेयक को सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज़ कर दिया था. बाद में वहां भी पिछड़े वर्गों के मुसलमानों का कोटा तय करके मामले को सुलझाया गया. अभी यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. ऐसे में बात गले नहीं उतरती कि प्रधानमंत्री ने मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों को मुसलमानों को आरक्षण देने संबंधी कोई भरोसा दिया हो. प्रधानमंत्री से मुलाक़ात करने वाले मुस्लिम संगठनों के तमाम रहनुमा भी अच्छी तरह जानते हैं कि संविधान के  मौजूदा स्वरूप के मुताब़िक मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता. फिर सवाल पैदा होता है कि ये लोग ऐसा हवाई दावा क्यों कर रहे हैं, जिसे पूरा ही नहीं किया जा सकता? मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग पर आख़िर इन संगठनों का इतना ज़ोर क्यों है? कहीं ऐसा तो नहीं कि मुसलमानों की नज़र में हीरो बनकर ये संगठन और इनके रहनुमा अपना कोई उल्लू सीधा कर रहे हों और बाद में मुसलमानों को यह समझा दें कि हमने तो मांग की थी, लेकिन सरकार ने हमारी मांग नहीं मानी तो हम क्या करेंदरअसल, मुसलमानों के लिए आरक्षण का मुद्दा बेहद पेचीदा है. इसे समझदारी और संयम से सुलझाने की ज़रूरत है. मसलमानों को आरक्षण और रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने की मांगें परस्पर विरोधी हैं. रंगनाथ मिश्र आयोग मुस्लिम समुदाय की उन बिरादरियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की वकालत करता है, जिनकी समकक्ष हिंदू जातियां अनुसूचित जातियों में शामिल हैं. इसके लिए हमें ज़रा इतिहास के पन्ने पलटने पड़ेंगे. अनुसूचित जातियों में अभी तक हिंदू, सिख और बौद्ध ही शामिल हैं. हालांकि अनुसूचित जाति आदेश 1950 के पैरा तीन में शुरू में लिखा गया था कि ऐसा कोई व्यक्ति अनुसूचित जाति में शामिल नहीं होगा, जो हिंदू धर्म से इतर किसी और धर्म को मानता हो, लेकिन बाद में सिखों की मांग पर 1955 में हिंदू शब्द के  साथ सिख शब्द जोड़ा गया और 1990 में नवबौद्ध शब्द जोड़ कर बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति का दर्जा देने का रास्ता साफ़ कर दिया गया. 1996 में नरसिंह राव सरकार ने एक अध्यादेश के ज़रिए ईसाई धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जातियों में शामिल करने की कोशिश की थी, लेकिन भाजपा के तीखे विरोध के चलते इस अध्यादेश को ठंडे बस्ते में डालना पड़ा. तबसे ईसाई संगठन दलित ईसाइयों को अनुसूचित जातियों में शामिल कराने की लगातार मुहिम चला रहे हैं. उन्हीं दिनों मुसलमानों में इस मुद्दे पर जागरूकता पैदा हुई. ऐसे तमाम मुसलमान जिनके  पूर्वज कभी दलित हुआ करते थे, ख़ुद को अनुसूचित जातियों में शामिल कराने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचाराधीन है. केंद्र सरकार को इस पर सुप्रीम कोर्ट में जवाब दाख़िल करना है.
दलित ईसाइयों और मुसलमानों की इसी मुहिम का नतीजा है कि सरकार ने जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग को इस मसले पर विचार करके सिफ़ारिश करने का ज़िम्मा सौंपा. जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने अपनी रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा है कि धर्म के आधार पर मुसलमानों और ईसाइयों को आरक्षण से वंचित रखना संविधान के ख़िलाफ़ है. जस्टिस रंगनाथ मिश्र ने यह भी कहा है कि संविधान में संशोधन किए बग़ैर ही ईसाई और इस्लाम धर्म अपनाने वाले दलितों को भी अनुसूचित जातियों में शामिल किया जा सकता है. जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग की स़िफारिशों पर अनुसूचित जाति आयोग भी अपनी मुहर लगा चुका है. अब यह पूरा मामला प्रधानमंत्री के हाथ में है. अगर मुस्लिम संगठन इस पर ज़ोर दें तो यह काम जल्दी हो सकता है. भाजपा और कांग्रेस को छोड़ कर तमाम राजनीतिक दल इसके  हक़ में हैं. सवाल पैदा होता है कि तमाम मुस्लिम संगठन इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से बात क्यों नहीं करते? अभी तक एक भी मुस्लिम संगठन ने जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग की स़िफारिशें लागू कराने के लिए आंदोलन छेड़ने की बात नहीं की है. अगर रंगनाथ मिश्र आयोग की सिफ़ारिशें अमल में आ जाएं तो मुसलमानों के विकास के रास्ते खुल सकते हैं. अनुसूचित जातियों को मिलने वाली तमाम सुविधाएं बेहद ग़रीब तबक़े के मुसलमानों को भी मिलने लगेंगी. यही नहीं, लोकसभा की 79 और देश भर में विधानसभाओं की उन 1050 सीटों पर चुनाव लड़ने का रास्ता भी साफ हो जाएगा, जो अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं. इससे महिला आरक्षण विधेयक में मुसलमानों के लिए कोटा तय करने का मसला भी हल हो जाएगा. ताज्जुब की बात है कि इतनी अहम स़िफारिशों को छोड़ कर तमाम मुस्लिम संगठन सारे मुसलमानों को आरक्षण की बेतुकी मांग पर अड़े हैं. इसके लिए संविधान के बुनियादी ढांचे को बदलना होगा. मौजूदा समय में यह बेहद टेढ़ी खीर है. वैसे भी सारे मुसलमानों को आरक्षण की ज़रूरत नहीं है. आरक्षण की ज़रूरत स़िर्फ सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से पिछड़े मुसलमानों को है. संविधान में भी आरक्षण का यही आधार तय किया गया है. अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाले मुसलमान पहले से ही इस वर्ग के लिए तय 27 फ़ीसदी आरक्षण के हक़दार हैं. हां, यह और बात है कि उन्हें इस वर्ग में उतना फ़ायदा नहीं मिल पाता, जितना मिलना चाहिए, क्योंकि यहां उनका मुक़ाबला आर्थिक रूप से मज़बूत पिछड़ी जातियों से होता है. जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग की स़िफारिशों पर अमल के  साथ ही इस वर्ग में आने वाली मुसलमानों की वे बिरादरियां अनुसूचित जाति में शामिल हो जाएंगी, जिनकी समकक्ष हिंदू जातियां अनुसूचित जातियों में आती हैं. लेकिन इतनी अहम सिफ़ारिशों को लागू कराने पर तथाकथित मुस्लिम नेतृत्व का कतई ध्यान नहीं है. इसके उलट वे सारे मुसलमानों के लिए आरक्षण की मांग करके  संघ परिवार को मुसलमानों के ख़िलाफ़ माहौल बनाने की वजह और ख़ुराक दोनों दे रहे हैं. ज़ाहिर सी बात है कि सारे मुसलमानों को आरक्षण देने की मांग किसी भी सूरत से देश हित में नहीं है, लेकिन तमाम मुस्लिम संगठन अगर इसी पर अड़े हैं तो इसकी कोई और वजह हो सकती है. कहीं इसके  पीछे यह वजह तो नहीं कि इन तमाम मुस्लिम संगठनों की कमान तथाकथित अगड़े मुसलमानों के हाथ में है. जस्टिस रंगनाथ मिश्र आयोग पिछड़े वर्गों के मुसलमानों के लिए आरक्षण की वकालत करता है.
(लेखक चैनल वन के मैनेजिंग एडिटर हैं)
                         http://www.chauthiduniya.com

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