Sunday 11 December 2011

दीनी व सियासी रहनुमाओं को मिलकर काम करना चाहिए


आज देश में मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय होने के बावजुद सियासी सोबे में हासिये पर है। लेकिन ऐसी स्थिति केवल मुसलमानों की राजनीति ही में नहीं अपितु जीवन के हर सोबे में है चाहे वो तालीम का हो या फिर मुआसरी। मुसलमानों का एक बड़ा तबका केवल दीनी रहनुमाओं की बात सुनता है। यदि ऐसे में दीनी रहनुमा सियासी रहनुमाओं के साथ मिलकर अपनी दीनी जिम्मेदारियों के साथ साथ हजुरे पाक हजरत मोहम्मद सल्लाहू वल्लेवस्लम के नकशे कदम पर चलते हुए दीनी और सियासी जिम्मदारियों को निभाए। तो वो दिन दूर नहीं कि मुसलमान को अपना खोया हुआ वोकार दुबारा से हासिल न हो। इसके लिए जरुरी है दोनों तबको में आपसी तालमेल।
आज जबकि देश की आबादी का लगभग 20 फीसदी हिस्सा मुस्लिम आबादी का है। इस लिहाज से देश के हर सोबे में इसी अनुपात से मुसलमानों की हिस्सेदारी होनी चाहिए। देश की विधान सभाओं और लोकसभा में आबादी के अनुपात में बराबर की हिस्सेदारी होनी चाहिए। सरकारी नौकरियों और प्रशासनिक अमले में भी आबादी के अनुपात में भागेदारी होनी चाहिए। लेकिन जो नहीं हैं। इसका कारण साफ और सीधा है कि मुसलमानों का दीनी तालीम की अपेक्षा देश में प्रचलित आधुनिक तालीम सियासी और आर्थिक सोबे में कम रुजाहन। इसके लिए यदि दीनी रहनुमा पहल करें और सियासी रहुमाओं से तालमेल बिठा कर कौम के मौजुदा मुस्तकबिल के बारे में गौरो फिकर करके कोई एक ऐसा रास्ता निकालें। जिससे दीनी सोबे के साथ मुसलमानों को दुनियावी तालीम, सियासी और मुआसरी सोबे में भी खुद कफील बनाया जा सके।
मुसलमानों को अपनी वोट की ताकत का अहसास कराकर उनमें इतनी समझ पैदा की जाए, कि जहमुरियत में सता पर काबिज होने के लिए अपने आपको संगठित करना निहायत जरुरी है। यदि कोई समुदाय अपने आपको इस काबिल या कफिल बना लेता है कि वो वोट की ताकत पर खुद सता हासिल कर ले। यदि ऐसा नहीं कर पाता तो दूसरे को सता में लाने और रोकने का काम कर सकता है। तो यह लाजीम हो जाता है कि ऐसे सियासी दल खुद ब खुद उसकी अहमियत को समझकर उसकी हिस्सेदारी को तसलीम किए बैगर नहीं रह सकते। ऐसी स्थिति में मुसलमानों का दोनों परिस्थतियों में फायदा ही फायदा है। ऐसे में मुसलमानों को हर सोबे में विकास होना लाजमी है। इसलिए मौजुदा परिस्थितियों के मद्दे-नजर मुसलमानों के मुस्तकबिल को बेहतर बनाने की लिए दीनी और सियासी रहनुमाओं को मिलकर और आपसी सुझबुझ के साथ काम करना चाहिए। ताकि मुसलमानों की आबादी को वोट की ताकत में तबदील किया जा सके। ऐसा होने पर आज जो मुसलमान अपने आपको अपने ही देश बेगाना समझ रहा है। उसको यह समझने में देर नहीं लगेगी कि वो अपने देश में बेगाना नहीं बल्कि असली हिस्सेदार है।

मो. रफीक चौहान (एडवोकेट)
मुख्य प्रदेश संयोजक
हरियाणा मुस्लिम खिदमत सभा

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