Tuesday 10 April 2012

अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों का हनन


उच्चतम न्यायालय की ग्यारह सदस्य खंडपीठ ने टी एम पाई एवं पी ईनामदार की याचिकाओं पर संविधान की धारा 30 (1) के तहत निर्णय देते हुए अल्पसंख्यकों को पांच अधिकार दिए, जिसमें शिक्षण संस्थाओं में नियुक्ति, शुल्क निर्धारण, सोसाइटी का गठन, प्रवेश और अनुशासनहीन कर्मचारी के विरुद्ध कार्यवाही आदि अधिकार शामिल हैं. इन सभी अधिकारों को पाने के लिए देश की प्रत्येक शिक्षण संस्था को संबंधित प्रदेश के हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ती है. आश्चर्यजनक बात यह है कि यदि संबंधित अदालत द्वारा किसी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था को इंटर कॉलेज संबंधी किसी मामले पर राहत दे दी जाती है तो उसे अल्पसंख्यक डिग्री कॉलेज या जूनियर हाईस्कूल पर लागू नहीं माना जाता. परिणामस्वरूप एक ही प्रकार की राहत के लिए सभी शिक्षण संस्थाओं को उच्च न्यायालय की शरण लेनी पड़ती है, जिससे उनका आर्थिक और मानसिक शोषण होता है. इसी प्रकार संविधान में प्राप्त शुल्क निर्धारण अधिकार का हाल इससे भी बदतर है. उत्तर प्रदेश के सरकारी गजट विधायी अनुभाग-1, 735/सात-वि-1-02() 1-2006, 10 जुलाई 2006 उत्तर प्रदेश निजी व्यवसायिक शैक्षिक संस्था (प्रवेश का विनियमन और शुल्क का नियतन अध्यादेश) में कहा गया है कि यह अध्यादेश अल्पसंख्यक संस्थाओं को छोड़कर सहायता प्राप्त-ग़ैर सहायता प्राप्त निजी व्यवसायिक शैक्षिक संस्थाओं पर लागू होगा. इसी के साथ शिक्षा निदेशक (उच्च शिक्षा) इलाहाबाद द्वारा पत्रांक/डिग्री अर्थ-1/बीएड शुल्क/5612-6172/2009-10, 3 मार्च 2010 को एक आदेश पारित किया गया जिसमें निजी क्षेत्र के संस्थानों में चल रहे बीएड पाठयक्रमों का शुल्क निर्धारण करना था. यह आदेश प्रदेश के समस्त स्ववित्त पोषित महाविद्यालयों को संबोधित करते हुए जारी किया गया है, साथ ही लिख दिया गया है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को छोड़कर. हास्यास्पद स्थिति यह है कि सरकार खुद अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं का शुल्क निर्धारित नहीं करती और यदि संस्थाएं ़खुद शुल्क तय कर लें तो संबंधित विश्वविद्यालय उसे मानते नहीं. इस पर संस्थाएं अदालत का सहारा लेकर शुल्क निर्धारण कराती हैं, जिससे समय और श्रम की बर्बादी होती है. फिर सरकार मुना़फाखोरी और कुप्रबंधन का ठप्पा लगाकर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं का जमकर शोषण करती है. जबकि किसी भी संस्था या व्यक्ति को बिना दोष सिद्ध हुए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. उच्चतम न्यायालय ने पी ईनामदार बनाम महाराष्ट्र सरकार की याचिका पर निर्णय देते हुए स्पष्ट कहा है कि आप किसी नागरिक के अधिकारों पर इस शंका से रोक नहीं लगा सकते कि वह अपने अधिकारों का दुरुपयोग करेगा. यह कितना कड़वा सत्य है कि सब कुछ केंद्र और प्रदेश सरकार के सामने हो रहा है और हमारे प्रतिनिधि, अधिकारी एवं ़खुद को अल्पसंख्यकों का मसीहा कहने वाले राजनीतिक दल मूकदर्शक बने बैठे हैं.
उत्तर प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों को अल्पसंख्यक संस्था घोषित किए जाने हेतु मानकों के निर्धारण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नियम/विनियम इस प्रकार के नहीं होने चाहिए कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकार निष्प्रभावी हो जाएं. राज्य सरकार किसी भी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं लेगी, प्रबंध समिति के गठन में राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा और संस्था के प्रबंध तंत्र में अल्पसंख्यक समुदाय से बाहर के लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा. प्रवेश प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का आरक्षण मान्य नहीं होगा, यह संस्था का अधिकार है.
उत्तर प्रदेश के अशासकीय महाविद्यालयों को अल्पसंख्यक संस्था घोषित किए जाने हेतु मानकों के निर्धारण में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि नियम/विनियम इस प्रकार के नहीं होने चाहिए कि अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकार निष्प्रभावी हो जाएं. राज्य सरकार किसी भी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्था का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं लेगी, प्रबंध समिति के गठन में राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा और संस्था के प्रबंध तंत्र में अल्पसंख्यक समुदाय से बाहर के लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा. प्रवेश प्रक्रिया में किसी भी प्रकार का आरक्षण मान्य नहीं होगा, यह संस्था का अधिकार है. इन संस्थाओं के छात्र-छात्राओं को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर मिलेंगे. अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं में शिक्षण का माध्यम संबंधित संस्था स्वयं तय करेगी, जिसमें राज्य सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा. इतना सब कुछ स्पष्ट होते हुए भी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं में सरकारी अफसरों का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा है. वे अल्पसंख्यक संस्थाओं का प्रबंधन अपने हाथों में लेकर अदालत के आदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं. हालांकि वैकल्पिक व्यवस्था के तहत विवाद की स्थिति में अल्पसंख्यक संस्था का प्रबंध तंत्र प्रदेश के अल्पसंख्यक आयोग और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग में अपनी समस्या का निपटारा करा सकता है, परंतु अधिकतर जनपदों में ज़िलाधिकारी और ज़िला विद्यालय निरीक्षक इन संस्थाओं पर क़ब्ज़ा कर लेते हैं, जिससे इनका अल्पसंख्यक चरित्र ख़तरे में पड़ जाता है.
भारतीय राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (शिक्षण संस्थाएं) को पिछली यूपीए सरकार ने 2004 में स्थापित किया था, जिसका अध्यक्ष न्यायमूर्ति सुहैल एजाज़ सिद्दीकी को नियुक्त किया गया था. इस आयोग में नायाब अब्बासी गर्ल्स (पीजी) कॉलेज, अमरोहा (जेपी नगर) उत्तर प्रदेश ने दो याचिकाएं डालीं और दोनों ही ख़ारिज कर दी गईं. एक याचिका संविधान में मिले नियुक्ति के अधिकार से संबंधित थी, जिसमें स्पष्ट व्यवस्था है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाएं संबद्ध विश्वविद्यालय द्वारा घोषित शैक्षिक योग्यता के आधार पर किसी को भी प्रवक्ता, प्राचार्य अथवा लिपिकीय संवर्ग में नियुक्त कर सकती हैं, उन्हें विषय विशेषज्ञ नियुक्त करने की बाध्यता नहीं है, परंतु आयोग द्वारा एक बार भी इस याचिका की गंभीरता को नहीं समझा गया. एमजेपी रुहेलखंड विश्वविद्यालय, बरेली समेत सभी विश्वविद्यालयों ने यह नियम बना रखा है कि किसी विषय के प्रवक्ता के चयन हेतु पहले विश्वविद्यालय से विषय विशेषज्ञ नियुक्त कराएं, उसके बाद विश्वविद्यालय जाकर साक्षात्कार कराएं, तब उसका अनुमोदन प्राप्त होगा. क्या यह संविधान में मिले अधिकारों का खुला अपमान नहीं है? राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने इस याचिका पर जो निर्णय दिया, उसे प्रदेश के अधिकारियों ने मानने से इंकार कर दिया. इस पर उत्तर प्रदेश शासन के शिक्षा अनुभाग को एक दिसंबर, 2010 को एक कार्यालय ज्ञाप जारी करना पड़ा, जिसमें कहा गया कि दि नेशनल कमीशन फार माइनारिटी एजूकेशनल  इंस्टीट्यूशन एक्ट 2004 के अंतर्गत गठित एक संवैधानिक संस्था है, इसलिए उसके द्वारा निर्गत प्रमाणपत्रों-आदेशों का अनुपालन किया जाना आवश्यक है. ऐसी शिक्षण संस्थाओं को, जिन्हें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्था आयोग द्वारा अल्पसंख्यक संस्था घोषित किया जा रहा है, उनके साथ अल्पसंख्यक संस्था की तरह व्यवहार किया जाए और आयोग द्वारा निर्गत आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए. इस आदेश की प्रति प्रदेश के प्रमुख सचिव, सचिव, अल्पसंख्यक कल्याण एवं मुस्लिम वक़्फ विभाग, शिक्षा निदेशक (माध्यमिक), शिक्षा निदेशक (बेसिक), निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण और समस्त ज़िला विद्यालय निरीक्षकों एवं ज़िला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को भेजी गई है. आदेश से एक बात सा़फ हो गई कि अफसरशाही के सामने आयोग का कोई महत्व नहीं है, इसीलिए सरकार को कार्यालय ज्ञाप जारी करने को विवश होना पड़ा. मज़ेदार बात यह है कि इस कार्यालय ज्ञाप में उच्च शिक्षा, तकनीकी शिक्षण संस्थाओं को छोड़ दिया गया. यही नहीं, बीएड के 2008-09 सत्र में जब अधिक शुल्क लेने की सामान्य शिक़ायत हुई तो सरकार ने बीएड कॉलेजों को निशाना बना लिया था. इस पर उच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए स्पष्ट आदेश दिया था कि प्रथम काउंसिलिंग के लिए जमा शुल्क वापस नहीं होगा और किसी अल्पसंख्यक संस्था का शुल्क संबंधित विश्वविद्यालय में जमा नहीं कराया जाएगा, परंतु इस आदेश के बाद भी अमरोहा (जेपी नगर) की तत्कालीन ज़िलाधिकारी रितु माहेश्वरी ने 15 जून, 2009 को चार अल्पसंख्यक डिग्री कॉलेजों एवं एक सामान्य डिग्री कॉलेज को नोटिस देकर फीस वापसी का आदेश जारी कर दिया. उन्हें बार-बार हाईकोर्ट के आदेश और संविधान के अनुच्छेद 30 (1) का हवाला दिया गया, परंतु वह नहीं मानीं और उन्होंने संबंधित कॉलेजों में कैंप लगवा कर ज़बरन फीस वापसी कराई. जनपद के अल्पसंख्यक डिग्री कॉलेजों ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की शरण ली, परंतु आयोग ने एक बार भी ज़िलाधिकारी को नोटिस देकर यह नहीं पूछा कि वह अदालत के आदेश के बावजूद हस्तक्षेप क्यों कर रही हैं. ऐसा नज़ारा पूरे उत्तर प्रदेश में देखा गया और फिर अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं की रक्षा के लिए डाली गई याचिका छह तारीख़ों के बाद निरस्त कर दी गई.
प्रदेश के पांच हज़ार मदरसों की आधुनिकीकरण योजना के लगभग बीस हज़ार शिक्षक पिछले ढाई साल से अपना वेतन मांग रहे हैं, लेकिन उन्हें आश्वासन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं मिला. इस संबंध में अल्पसंख्यक आयोग द्वारा आज तक कोई पत्र केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय या अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री को नहीं लिखा गया कि उक्त बीस हज़ार शिक्षक बदहाल क्यों हैं. रंगनाथ मिश्र आयोग एवं सच्चर कमेटी की स़िफारिशों को लागू कराने के लिए आयोग ने आज तक कोई क़दम नहीं उठाया. पांच राज्यों में अल्पसंख्यकों को आरक्षण दिया जा रहा है, परंतु इससे उनका भला होने वाला नहीं. ऑल इंडिया मदरसा आधुनिकीकरण टीचर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष मुस्लिम रजा के नेतृत्व में हजारों शिक्षकों ने बीती 23 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दिया और ढाई वर्ष से रुके वेतन को दिलाने की मांग उठाई. अगले दिन यानी 24 फरवरी को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल ने धरनास्थल पर आकर आश्वासन दिया कि मार्च के अंत तक रुका हुआ वेतन दिला दिया जाएगा, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ. तहफुजे मदारिस अरबिया पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सैय्यद जिल्ले मुजतबा ने भी दर्जनों ज्ञापन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिलसोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (शिक्षण संस्थाएं) नई दिल्ली और उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग को भेजे, परंतु कहीं से कोई राहत नहीं मिली.

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1 comment:

  1. सर 2018 में प्रबंधक समिति में शिक्षकों की नियुक्ति की थी और उनका वेतन अभी तक नहीं मिला है उसका भोजन भी नहीं कर रहे हैं बताने की कृपा करें

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