Friday 25 November 2011

माया 'राज' में एक और आइपीएस हुआ बागी !

लखनऊ उत्तर प्रदेश में डी डी मिश्रा केस के बाद यूपी के एक दूसरे आईपीएस अधिकरी अमिताभ ठाकुर ने वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रताडना और व्यक्तिगत विद्वेष का आरोप लगाया गया है। अमिताभ ने कुंवर फ़तेह बहादुर, प्रमुख सचिव (गृह), विजय सिंह, सचिव, मुख्यमंत्री और अन्य पर स्वयं को एक लंबे समय से प्रताडित करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही एक रिट याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच में दायर की है। इस रिट याचिका में अमिताभ ने कई मामले बताए हैं, जिनमे आरोप लगाया है कि उन्हें इन अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर व्यक्तिगत वैमनस्य के तहत परेशान किया जाता रहा है।
इसमें एक प्रकरण उन्हें स्टडी लीव नहीं देने का है जिसमे कैट, लखनऊ और हाईकोर्ट में आठ मुक़दमे दायर करने के बाद उन्हें आईआईएम लखनऊ में अध्ययन हेतु दो सालों का अध्ययन अवकाश मिल सका था। आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने आरोप लगाते हुए कहा कि इस मामले में जहां अन्य आईपीएस अधिकारियों के मामले सौ दिनों के अंदर निस्तारित किये गए थे, वहीं मेरे मामले में कई सालों तक लटकाया गया था।

दूसरा मामला उनके एसपी गोंडा के रूप में निलंबन से सम्बंधित है जिसमे अमिताभ ठाकुर ने ये आरोप लगाया है कि इन अधिकारियों ने जानबूझ कर मामले को बहुत लंबे समय तक लंबित रखा था और अंत में चुनाव आयोग द्वारा कुंवर फ़तेह बहादुर को प्रमुख सचिव (गृह) पद से हटाये जाने पर मंजीत सिंह द्वारा प्रमुख सचिव (गृह) के रूप में 01 मई 2008 को न्याय करते हुए प्रकरण को तत्काल समाप्त किया गया था।

तीसरे मामले में अमिताभ ठाकुर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि मेरे एसपी देवरिया के रूप में एक जांच के 25 मई 2007 को समाप्त हो जाने के बाद इन अधिकारियों द्वारा उसे विधि के प्रावधानों के विपरीत दुबारा 26 मई 2009 को प्रारम्भ किया गया था जिसे कैट, लखनऊ ने वाद संख्या 177/2010 में 08 सितम्बर 2011 के अपने आदेश में विधिविरुद्ध पाते हुए निरस्त करने का आदेश किया था।

चौथे मामले में अमिताभ ने मांग कि है कि उनके विरुद्ध कोई जांच लंबित नहीं होने के बावजूद उनको इन्ही अधिकारियों की शह पर डीआईजी के पद पर नियमानुसार प्रोन्नति नहीं दी जा रही है। इसी तरह उन्हें एसपी रूल्स और मैनुअल के पद पर जानबूझ कर तैनात किया गया जबकि यह अस्तित्वहीन पद है और यह विभाग शासन द्वारा अभी बना तक नहीं है।

अमिताभ ठाकुर ने बताया कि अपने सभी मामलों को सामने रखते हुए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री को 10 जून 2011 एवं 16 अगस्त 2011, मुख्य सचिव को 04 अक्टूबर 2011, प्रमुख सचिव (गृह) को 15 जून 2009, 05 अगस्त 2011, 16 अगस्त 2011 एवं 31 अक्टूबर 2011 एवं पुलिस महानिदेशक को 25 जुलाई 2011 को कई पत्र प्रेषित कर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कराने और दोषी पाए गए अधिकारियों को दण्डित करने की मांग की गयी किन्तु इनमे से किसी पत्र का उत्तर प्रदेश शासन के अधिकारियों द्वारा कोई भी संज्ञान नहीं लिया गया। लिहाजा उन्हें अब बाध्य हो कर हाई कोर्ट से यह गुहार करनी पड़ी है कि उनके द्वारा अपने विभिन्न पत्रों में लगाए गए आरोपों की जांच करा कर कुंवर फ़तेह बहादुर, विजय सिंह या किसी भी अन्य अधिकारी को दोषी पाए जाने पर नियमानुसार दण्डित किया जाए। साथ ही उन्हें जांच के बाद तमाम मानसिक और सामाजिक प्रताडना के लिए समुचित रूप से क्षतिपूर्ति दी जाई।

Friday 18 November 2011

सोनिया गांधी के खिलाफ जांच कार्रवाई क्यों नहीं?

  भारतीय मीडिया खामोश क्यों ?

 कांग्रेस पार्टी और खुद सोनिया गांधी अपनी पृष्ठभूमि के बारे में जो बताते हैं , वो तीन झूठों पर टिका हुआ है। पहला ये है कि उनका असली नाम अंतोनिया है न की सोनिया। ये बात इटली के राजदूत ने नई दिल्ली में 27 अप्रैल 1973 को लिखे अपने एक पत्र में जाहिर की थी। ये पत्र उन्होंने गृह मंत्रालय को लिखा था , जिसे कभी सार्वजनिक नहीं किया गया। सोनिया का असली नाम अंतोनिया ही है , जो उनके जन्म प्रमाण पत्र के अनुसार एकदम सही है। सोनिया ने इसी तरह अपने पिता का नाम स्टेफनो मैनो बताया था। वो दूसरे वल्र्ड वार के समय रूस में युद्ध बंदी थे। स्टेफनो नाजी आर्मी के वालिंटियर सदस्य थे। बहुत ढेर सारे इतालवी फासिस्टों ने ऐसा ही किया था। सोनिया दरअसल इतालवी नहीं बल्कि रूसी नाम है। सोनिया के पिता रूसी जेलों में दो साल बिताने के बाद रूस समर्थक हो गये थे। अमेरिकी सेनाओं ने इटली में सभी फासिस्टों की संपत्ति को तहस-नहस कर दिया था। सोनिया ओरबासानो में पैदा नहीं हुईं , जैसा की उनके बायोडाटा में दावा किया गया है। इस बायोडाटा को उन्होंने संसद में सासंद बनने के समय पर पेश किया था , सही बात ये है कि उनका जन्म लुसियाना में हुआ। शायद वह इस जगह को इसलिए छिपाने की कोशिश करती हैं ताकि उनके पिता के नाजी और मुसोलिनी संपर्कों का पता नहीं चल पाये और साथ ही ये भी उनके परिवार के संपर्क इटली के भूमिगत हो चुके नाजी फासिस्टों से युद्ध समाप्त होने तक बने रहे। लुसियाना नाजी फासिस्ट नेटवर्क का मुख्यालय था , ये इटली-स्विस सीमा पर था। इस मायने हीन झूठ का और कोई मतलब नहीं हो सकता। तीसरा सोनिया गांधी ने हाईस्कूल से आगे की पढ़ाई कभी की ही नहीं , लेकिन रायबरेली से चुनाव लड़ने के दौरान उन्होंने अपने चुनाव नामांकन पत्र में उन्होंने ये झूठा हलफनामा दायर किया कि वो अंग्रेजी में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से डिप्लोमाधारी हैं। ये हलफनामा उन्होंने 2004 के लोकसभा चुनावों के दौरान रायबरेली में रिटर्निंग ऑफिसर के सम्मुख पेश किया था। इससे पहले 1989 में लोकसभा में अपने बायोग्राफिकल में भी उन्होंने अपने हस्ताक्षर के साथ यही बात लोकसभा के सचिवालय के सम्मुख भी पेश की थी , जो की गलत दावा था। बाद में लोकसभा स्पीकर को लिखे पत्र में उन्होंने इसे मानते हुए इसे टाइपिंग की गलती बताया। सही बात ये है कि श्रीमती सोनिया गांधी ने कभी किसी कालेज में पढाई की ही नहीं। वह पढ़ाई के लिए गिवानो के कैथोलिक नन्स द्वारा संचालित स्कूल मारिया आसीलेट्रिस गईं , जो उनके कस्बे ओरबासानों से 15 किलोमीटर दूर था। उन दिनों गरीबी के चलते इटली की लड़कियां इन मिशनरीज में जाती थीं और फिर किशोरवय में ब्रिटेन ताकि वहां वो कोई छोटी-मोटी नौकरी कर सकें। मैनो उन दिनों गरीब थे। सोनिया के पिता और माता की हैसियत बेहद मामूली थी और अब वो दो बिलियन पाउंड की अथाह संपत्ति के मालिक हैं। इस तरह सोनिया ने लोकसभा और हलफनामे के जरिए गलत जानकारी देकर आपराधिक काम किया है , जिसके तहत न केवल उन पर अपराध का मुकदमा चलाया जा सकता है बल्कि वो सांसद की सदस्यता से भी वंचित की जा सकती हैं। ये सुप्रीम कोर्ट की उस फैसले की भावना का भी उल्लंघन है कि सभी उम्मीदवारों को हलफनामे के जरिए अपनी सही पढ़ाई-लिखाई से संबंधित योग्यता को पेश करना जरूरी है। इस तरह ये सोनिया गांधी के तीन झूठ हैं , जो उन्होंने छिपाने की कोशिश की। कहीं ऐसा तो नहीं कि कतिपय कारणों से भारतीयों को बेवकूफ बनाने के लिए उन्होंने ये सब किया। इन सबके पीछे उनके उद्देश्य कुछ अलग थे। अब हमें उनके बारे में और कुछ भी जानने की जरूरत है ।

 सोनिया गांधी ने इतनी इंग्लिश सीख ली थी कि वो कैम्ब्रिज टाउन के यूनिवर्सिटी रेस्टोरेंट में वैट्रेस बन गईं। वो राजीव गांधी से पहली बार तब मिलीं जब वो 1965 में रेस्टोरेंट में आये। राजीव यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट थे , लेकिन वो लंबे समय तक अपने पढ़ाई के साथ तालमेल नहीं बिठा पाये इसलिए उन्हें 1966 में लंदन भेज दिया गया , जहां उनका दाखिला इंपीरियल कालेज ऑफ इंजीनियरिंग में हुआ। सोनिया भी लंदन चली आईं। मेरी सूचना के अनुसार उन्हें लाहौर के एक व्यवसायी सलमान तासिर के आउटफिट में नौकरी मिल गई। तासीर की एक्सपोर्ट-इम्पोर्ट कंपनी का मुख्यालय दुबई में था लेकिन वो अपना ज्यादा समय लंदन में बिताते थे। आईएसआई से जुडे होने के लिए उनकी ये प्रोफाइल जरूरी थी। स्वाभावित तौर पर सोनिया इस नौकरी से इतना पैसा कमा लेती थीं कि राजीव को लोन फंड कर सकें। राजीव मां इंदिरा गांधी द्वारा भारत से भेजे गये पैसों से कहीं ज्यादा पैसे खर्च देते थे। इंदिरा ने राजीव की इस आदत पर मेरे सामने भी 1965 में तब मेरे सामने भी गुस्सा जाहिर किया था जब मैं हार्वर्ड में इकोनामिक्स का प्रोफेसर था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने मुझे ब्रेंनेडिस यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में , जहां वो ठहरी थीं , व्यक्तिगत तौर पर चाय के लिए आमंत्रित किया। पीएन लेखी द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किये गये राजीव के छोटे भाई संजय को लिखे गये पत्र में साफ तौर पर संकेत दिया गया है कि वह वित्तीय तौर पर सोनिया के काफी कर्जदार हो चुके थे और उन्होंने संजय से अनुरोध किया था , जो उन दिनों खुद ब्रिटेन में थे और खासा पैसा उड़ा रहे थे और कर्ज में डूबे हुए थे। उन दिनों सोनिया के मित्रों में केवल राजीव गांधी ही नहीं थे बल्कि माधवराव सिंधिया भी थे। सिंधिया और एक स्टीगलर नाम का जर्मन युवक भी सोनिया के अच्छे मित्रों में थे। माधवराव की सोनिया से दोस्ती राजीव की सोनिया से शादी के बाद भी जारी रही। 1972 में माधवराव आईआईटी दिल्ली के मुख्य गेट के पास एक एक्सीडेंट के शिकार हुए और उसमें उन्हें बुरी तरह चोटें आईं , ये रात दो बजे की बात है , उसी समय आईआईटी का एक छात्र बाहर था। उसने उन्हें कार से निकाल कर ऑटोरिक्शा में बिठाया और साथ में घायल सोनिया को श्रीमती इंदिरा गांधी के आवास पर भेजा जबकि माधवराव सिंधिया का पैर टूट चुका था और उन्हें इलाज की दरकार थी। दिल्ली पुलिस ने उन्हें हॉस्पिटल तक पहुंचाया। दिल्ली पुलिस वहां तब पहुंची जब सोनिया वहां से जा चुकी थीं। बाद के सालों में माधवराव सिंधिया व्यक्तिगत तौर पर सोनिया के बड़े आलोचक बन गये थे और उन्होंने अपने कुछ नजदीकी मित्रों से अपनी आशंकाओं के बारे में भी बताया था। कितना दुर्भाग्य है कि वो 2001 में एक विमान हादसे में मारे गये। मणिशंकर अय्यर और शीला दीक्षित भी उसी विमान से जाने वाले थे लेकिन उन्हें आखिरी क्षणों में फ्लाइट से न जाने को कहा गया। वो हालात भी विवादों से भरे हैं जब राजीव ने ओरबासानो के चर्च में सोनिया से शादी की थी , लेकिन ये प्राइवेट मसला है , इसका जिक्र करना ठीक नहीं होगा। इंदिरा गांधी शुरू में इस विवाह के सख्त खिलाफ थीं , उसके कुछ कारण भी थे जो उन्हें बताये जा चुके थे। वो इस शादी को हिन्दू रीतिरिवाजों से दिल्ली में पंजीकृत कराने की सहमति तब दी जब सोवियत समर्थक टी एन कौल ने इसके लिए उन्हें कंविंस किया , उन्होंने इंदिरा जी से कहा था कि ये शादी भारत-सोवियत दोस्ती के वृहद इंटरेस्ट में बेहतर कदम साबित हो सकती है। कौल ने भी तभी ऐसा किया जब सोवियत संघ ने उनसे ऐसा करने को कहा।

सोनिया गांधी इस घोटाले में शामिल नहीं हैं!

 चौंसठ हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला करने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा बड़े ठाठ से अपने पद पर क्या इसलिए रहे, क्योंकि उनके रिश्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मधुर हैं? जनता दल अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी आरोप लगाते हैं कि 2 जी स्पेक्ट्रम सौदे में सोनिया गांधी के केमैन आइलैंड स्थित बैंक ऑफ अमेरिका के खाते में करोड़ों डॉलर की एंट्री हुई है और इसके तमाम काग़ज़ात उनके पास मौजूद हैं. बहरहाल, क्या भाजपा इस मसले पर इसलिए ख़ामोश है, क्योंकि नैनो कार के प्लांट को गुजरात में स्थापित करने में ए राजा की ख़ासमख़ास दोस्त नीरा राडिया ने अहम भूमिका निभाई थी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए राज्य के औद्योगिक विकास और राज्य में पूंजी निवेश का यह बेहतरीन मौक़ा था. या फिर वजह यह है कि ए राजा ने भाजपा के ख़ासमख़ास, मुंबई में डीबी रियलिटी एवं अवश्या नाम की कंपनी के ज़रिए रियल स्टेट का धंधा करने वाले और यूनीटेक वायरलेस के मालिक शाहीद बलवा को नियमों के ख़िला़फ जा कर 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस दे दिया गया, जिससे उसने नार्वे की कंपनी से 1661 करोड़ रुपये के एवज में 6200 करोड़ रुपये कमाए. या इसलिए कि जब ए राजा पर्यावरण मंत्री थे, तब उन्होंने बेजा तरीक़ों से रेड्डी बंधुओं की कई ग़ैर क़ानूनी खानों को क्लीयरेंस सर्टीफिकेट दे दिए थे. या फिर दलाल नीरा राडिया से अपने दिग्गज नेता अनंत कुमार की गहरी नज़दीकियों के कारण भाजपा ने अपनी ज़ुबान पर ताले जड़ लिए हैं. अनंत कुमार जब नागरिक उड्डयन मंत्री थे, तब सुपर दलाल नीरा राडिया मैज़िक एयर के नाम से अपना एयरलाइंस शुरू करना चाहती थीं और वह भी महज़ एक लाख रुपये में. नीरा राडिया के दीवाने अनंत कुमार ने नीरा के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूरी दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन तत्कालीन उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने मसले की नज़ाकत समझी और उन्होंने अनंत कुमार के उत्साह पर पानी फेरते हुए नीरा के प्रस्ताव पर विचार करने तक से मना कर दिया. ख़ैर, कांग्रेस को घेरने के जोश के अतिरेक में भाजपा नेता अरुण जेटली ने संसद में इस मुद्दे को उछाल तो दिया, पर जब भाजपा नेतृत्व को लगा कि इस कीचड़ में उनका दामन भी दागदार होना है तो भाजपा नेताओं ने चुप बैठ जाना ही मुनासिब समझा. आज की तारीख़ में आप किसी भी भाजपा नेता से पूछ लीजिए, वह सुपर कॉरपोरेट दलाल नीरा राडिया को नहीं जानता. यहां तक कि संसद में अपनी आवाज़ बुलंद करने वाले अरुण जेटली भी कहते हैं कि उन्हें स़िर्फ घोटाले की जानकारी है, नीरा राडिया क्या बला है, उन्हें नहीं पता. वैसे तो सीपीआई नेता सीताराम येचुरी ने भी 29 फरवरी 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर संचार मंत्री ए राजा द्वारा 2 जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस जारी करने संबंधी निर्देशों को ख़ारिज करने को कहा था, क्योंकि वे निर्देश नियमों के विरुद्ध दिए गए थे और सीताराम येचुरी को यह अंदेशा था कि इसमें बहुत बड़े स्तर पर धांधली की गई है. पर जैसे ही राजा के साथ नीरा राडिया का नाम उछला और नीरा की फोन टैपिंग के रिकॉर्ड आम हुए, सीपीआई और सीपीएम नेताओं को भी मानो सांप सूंघ गया, क्योंकि आज की तारीख़ में वामपंथियों के सबसे बड़े नेता प्रकाश करात ने नीरा राडिया के कहने पर ही हल्दिया पेट्रोकेमिकल सौदे में रिलायंस की मदद की थी. यह बात भी साफ हो गई कि नीरा के कई महत्वपूर्ण एवं बड़े वामपंथी और सीटू नेताओं से क़रीबी संबंध रहे हैं. इसके अलावा नीरा राडिया उन तमाम औद्योगिक घरानों के लिए दलाली का काम करती रही है, जिनसे सीपीआई-सीपीएम का साबका किसी न किसी बहाने पड़ता रहा है. आज जब सीताराम येचुरी से यह पूछा जाता है कि क्यों नहीं वे लोग ए राजा के ख़िला़फ लामबंद हो रहे और नीरा राडिया की अविलंब गिरफ़्तारी की मांग सरकार से करते, तो वह मीठी सी मुस्कुराहट के साथ जवाब देते हैं कि उन्होंने तो बहुत पहले ही 2 जी स्पेक्ट्रम में हो रहे घोटालों के बारे में प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था. हां, नीरा राडिया कौन है, इसकी विशेष जानकारी उन्हें नहीं. ख़बरों की मार्फत ही उन्हें यह पता चल पाया है.
 2 जी स्पेक्ट्रम के आवंटन के घोटाले के पर्दाफाश ने देश के नामचीन पत्रकारों, नौकरशाहों, राजनेताओं और बड़े पूंजीपतियों के दोयम चरित्र को बेनकाब कर दिया है. साफ हो चुका है कि भारत के मंत्रिमंडल का गठन प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि सत्ता के दलाल करते हैं. फिर भी राष्ट्रीय मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने खामोशी अख्तियार कर रखी है, क्योंकि संचार मंत्री ए राजा और उनकी सखी नीरा राडिया के घोटालों में सबके हाथ काले हैं.

 वहीं सीपीएम के बुज़ुर्ग नेता ए बी वर्धन यह सवाल सुनते ही भड़क उठते हैं कि क्या उन्हें नीरा राडिया के बारे में पता है? नाराज़गी भरे लहजे में वह कहते हैं कि देश में ग़रीब जनता से जुड़ी इतनी समस्याएं हैं और आप हैं कि नीरा राडिया की चिंता में दुबली हुई जा रही हैं. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव तो नीरा राडिया के नाम पर बात करने को तो क्या, मिलने तक को राजी नहीं होते. गोया, जैसे उन्होंने अगर इस मसले पर अपना मुंह खोल लिया तो गुनाह हो जाएगा. राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव की चुप्पी भी ज़हन में कई सवाल खड़े करती है. सबकी ख़बर रखने वाले और हर किसी की दुखती रग पर हाथ रखने को हमेशा तैयार रहने वाले लालू प्रसाद भी नीरा राडिया से उतने ही अनभिज्ञ हैं, जितने कि उनके दूसरे सियासी साथी. नीरा का नाम सुनकर लालू यादव घूर कर देखते हैं और अपनी नज़रें फिरा लेते हैं.

 कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं. लिहाज़ा ज़ुबान खोलना ख़ुद के लिए ही ख़तरनाक हो सकता है, इसलिए सभी चुप हैं. और तो और, बड़े पत्रकार कहे जाने वाले बरखा दत्त और वीर सांघवी के नामों की चर्चा करते हुए भी इन दिग्गज नेताओं की ज़ुबान लड़खड़ाने लगती है. जिन औद्योगिक घरानों के लिए नीरा दलाली का काम करती रही है. वे सभी घराने देश की सभी बड़ी पार्टियों से जुड़े हैं. सभी जानते हैं कि टाटा, अंबानी, मित्तल जैसे पूंजीपति ही इन दलों की आर्थिक रीढ़ हैं. पार्टियों के रोज़ाना ख़र्चे से लेकर चुनाव तक का भार ये कुबेर उठाते ही इसलिए हैं कि उनके पोषित दल सत्ता के साझीदार बनें तो उनके सारे जायज़-नाजायज़ काम बग़ैर नियम-क़ानून के धड़ल्ले से हो सकें. तो चूंकि हाथ सबके काले हैं तो अब कौन किसके चेहरे पर कालिख़ मले?

 कौन है नीरा राडिया? यह सुनते ही जनता दल अध्यक्ष शरद यादव की पहले से ख़राब चल रही तबियत कुछ और बिगड़ जाती है. वह कहते हैं कि इस बारे में वह कभी बाद में बातें करेंगे. फिलहाल तो वह अस्पताल जा रहे हैं. जबकि सच यही है कि इन सभी को मालूम है कि नीरा राडिया कौन है और न स़िर्फ ए राजा, बल्कि अन्य कई रसूखदार नेताओं के साथ नीरा की जुगलबंदी का राज क्या है? पर मसला यह कि दल और जमात से इतर सभी नेताओं के पेंच कॉरपोरेट मामलों की दलाली के मामलों में कहीं न कहीं फंसे हुए हैं या सीधे तौर पर यह कह लें कि दलाली के इस हमाम में सभी नंगे हैं.

 ये बरखा दत्त और वीर सांघवी की टीआरपी ही है, जो कोई भी इनके ख़िला़फ मुंह खोलने को तैयार नहीं. पायोनियर, द हिंदू, मिड डे जैसे अख़बार और मीडिया पोर्टल भड़ास फॉर मीडिया की बात छोड़ दें तो दूसरे किसी भी अख़बार ने इस मुद्दे पर सुगबुगाहट तक नहीं दिखाई है. छोटी से छोटी ख़बरों को तान देने वाले न्यूज़ चैनल तो जैसे अंधे-बहरे बने बैठे हैं. शशि थरूर, लालू यादव, मायावती, बंगारू लक्ष्मण आदि के मसलों पर हफ्तों चीखने वाले न्यूज़ चैनलों को कुछ भी दिखाई-सुनाई नहीं दे रहा है. ये उनकी आर्थिक मजबूरी है या यह डर कि उनके चैनलों के नामचीन पत्रकार भी चैनलों के हितार्थ कहीं न कहीं दलाली का प्रपंच रच रहे हैं. सभी अपनी-अपनी टीआरपी भुना रहे हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो बेहद घाटे में चल रहा एनडीटीवी का व्यवसायिक घाटा एक साल में ही इतना कम नहीं हो गया होता. यह नीरा राडिया और बरखा के मैनेजमेंट का ही कमाल है, जिसके तहत हाई प्रोफाइल इंटरव्यू किए गए और खुलेआम उन लोगों की इमेज मेकिंग का काम किया गया. ऐसे में एनडीटीवी प्रबंधन तो बरखा के ख़िला़फ जा ही नहीं सकता. सरकार भी कोई कार्रवाई करने की नहीं सोच सकती. सत्ता के गलियारे में प्रियंका गांधी, जयंती नटराजन, पी चिदंबरम, शशि थरूर से लेकर फारुख अब्दुल्ला तक से बरखा की गहरी छनती है. फारुख अब्दुल्ला तो बरखा के इतने मुरीद हैं कि हाल ही में एनडीटीवी के एक टॉक शो में उन्होंने एंकर बरखा से ऑन एयर बड़े ही शायराना अंदाज़ से कहा कि बरखा, हमारे-तुम्हारे रिश्तों की चर्चा तो संसद के गलियारों तक हुई है. बरखा की सियासी दबंगई का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि एडमिरल सुरीश मेहता ने कारगिल युद्ध के दौरान बरखा को तीन जवानों की हत्या का दोषी माना था. बरखा कारगिल का लाइव कवरेज कर रही थी. इस दरम्यान वह अपनी ख़बरों को पुख्ता बनाने और सनसनी फैलाने की गरज से भारतीय जवानों की सही पोज़ीशन का भी ज़िक्र कर रही थी. मोर्चे पर तैनात जवान बार-बार बरखा को ऐसा करने से मना कर रहे थे, पर बरखा नहीं मानी. सुरीश मेहता ने 4 दिसंबर 2008 को नेवी डे के मौक़े पर पत्रकारों से यह बात कही कि ग़ैर ज़िम्मेदाराना कवरेज की वजह से तीन जवानों ने अपनी ज़िंदगी गंवा दी. पाकिस्तानी सैनिकों ने बरखा के बताए ठिकाने को ट्रेस कर भारतीय जवानों की जान ले ली. हालांकि एनडीटीवी के मालिक प्रणव रॉय ने सुरीश मेहता की बात को सरासर बेबुनियाद बताया था. एडमिरल मेहता आज भी अपनी बात पर कायम हैं.

 वीर सांघवी तो ख़ैर ख़ुद राज्यसभा सदस्य बनते-बनते रह गए, पर उन्होंने सत्ता की जोड़-तोड़ में महारत हासिल कर ली. वह न स़िर्फ भारत के राजनीतिज्ञों पर, बल्कि विदेशी सियासत में भी खासी दख़ल रखते हैं. क़ानूनी तौर पर वेश्यावृत्ति के लिए मशहूर थाइलैंड सरीखे देश के प्रधानमंत्री ने वीर को द फ्रेंड ऑफ थाइलैंड अवार्ड से सम्मानित किया है. अरबपतियों से ख़ातिरदारी कराने में वीर सांघवी पुराने माहिर हैं. वह टाटा समूह के आलीशान होटलों में ठहरते हैं तो उनकी विमान यात्राओं का बिल अंबानी भरते हैं. ज़ाहिर है, इन सबके एवज में वीर सांघवी सरकारी गलियारे में नीरा राडिया जैसी दलालों की बैसाखी बन अपनी पत्रकारिता की बोली लगाते हैं.

 जनता पार्टी के अध्यक्ष डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी कहते हैं कि यूपीए सरकार के पहले कार्यकाल में ही जब ए राजा पर ढेरों आरोप लगे थे, तब भी उन्हें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मर्ज़ी के ख़िला़फ दोबारा संचार मंत्री बनाया गया. तो इसका साफ मतलब है कि इसमें सोनिया गांधी की सहमति थी. और अगर ऐसा नहीं था तो इसका आशय यह है कि यूपीए सरकार में मंत्री सत्ता के दलाल बनाते हैं, न कि सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह. 29 नवंबर 2008 को सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा के ख़िला़फ तमाम सबूत सौंपते हुए पत्र लिखा कि ए राजा को मंत्रिमंडल से फौरन हटा दिया जाए, क्योंकि वह लगातार घोटाले कर रहे हैं. प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. 31 अक्टूबर 2009, 8 मार्च और 13 मार्च 2010 को सुब्रमण्यम स्वामी ने फिर से मनमोहन सिंह के नाम चिट्ठियां लिखीं, तब 19 मार्च 2010 को स्वामी के पास केंद्र का जवाब आया कि राजा को कैबिनेट से हटाने या उन पर मुक़दमा चलाने का फैसला जल्दबाज़ी में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि अभी जांच चल रही है और सबूत इकट्ठे किए जा रहे हैं. आख़िरकार 12 अप्रैल 2010 को स्वामी ने अदालत में इस सिलसिले में अपनी याचिका दाख़िल की. अदालत ने उनकी अपील मान ली है. स्वामी की याचिका पर गर्मी की छुट्टियों के बाद सुनवाई होगी.

 लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार को इस महाघोटाले के बाबत कोई जानकारी नहीं थी. नीरा राडिया और राजा के बीच बातचीत के टेपों के आधार पर आयकर विभाग ने सरकार को अपनी अंतरिम जांच रिपोर्ट जुलाई 2009 में ही सौंप दी थी. सरकार इस काले धंधे की हक़ीक़त से वाक़ि़फ हो चुकी थी. फिर भी वह हाथ पर हाथ धरे बैठी रही, क्योंकि इस खेल में अगर नीरा राडिया नायिका के तौर पर भूमिका निभा रही थी तो कांग्रेस के कई कद्दावर नेता नीरा के मोहरे के तौर पर इस्तेमाल हो रहे थे. सरकार की नीतियों और नियमों को प्रभावित करने वाले कॉरपोरेट जगत के एक मज़बूत हिस्से जैसे टाटा, अंबानी, वेदांता, सहारा एयरलाइंस, रेमंड, सीआईआई, डीबी, यूनीटेक, स्टार न्यूज़, एनडीटीवी, नई दुनिया, न्यूज़ एक्स आदि नीरा राडिया की गोद में खेल रहे थे. नीरा की कंपनियों में भारत सरकार के दिग्गज नौकरशाह रह चुके पूर्व ऊर्जा सचिव और ट्राई अध्यक्ष प्रदीप बैजल, पूर्व वित्त सचिव सी एम वासुदेव, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन एस के नरुला, फॉरेन इंवेस्टमेंट बोर्ड के पूर्व चेयरमैन अजय दुआ वग़ैरह सलाहकार और निदेशक के तौर पर नीरा के जरख़रीद बन कर उसका हुक्म बजा रहे हैं. ज़ाहिर सी बात है, नीरा राडिया महज़ एक दलाल होते हुए भी इतनी मज़बूत है कि सरकार अगर उसके ख़िला़फ कार्रवाई करती है तो यह उसके अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मारने सरीखा होगा. यही वजह है कि मामले की जांच करने वाले सीबीआई डीआईजी विनीत अग्रवाल ने जब सरकार से दोषियों पर मुक़दमा चलाने की इजाज़त मांगी तो उनका तबादला कर वापस उनके होम काडर भेज दिया गया.

 सोचिए ज़रा, आईपीएल विवाद में शशि थरूर और उनकी मित्र सुनंदा पुष्कर की क्या फज़ीहत हुई. राहुल गांधी के ख़ास होने के बावजूद शशि का मंत्रालय उनके हाथ से निकल गया. साठ करोड़ का बोफोर्स घोटाला हुआ और देश की सरकार बदल गई. पर 60 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश होने के बाद भी संचार मंत्री ए राजा न स़िर्फ अपने पद पर बने हुए हैं, बल्कि उनकी चहेती नीरा राडिया अपना सारा माल समेट कर लंदन में ऐश कर रही है. और तो और, भारत में उसकी सभी पीआर कंपनियां अपना काम पहले की तरह ही ठाठ से कर रही हैं, पर सरकार चुप है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ख़ामोश हैं. भारतीय युवाओं को मेहनत और ईमानदारी का पाठ पढ़ाने वाले और विरोधियों की ख़ामियों पर धारदार हमला बोलने वाले कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी मूकदर्शक की भूमिका में हैं. क्या वाकई नीरा राडिया के रिश्ते सोनिया गांधी से घनिष्ठता भरे हैं? क्योंकि नीरा राडिया तो यही प्रचारित कर रही है. यक़ीनन, ऐसी स्थिति में सोनिया गांधी को चाहिए कि वह साबित करें कि उनका नीरा राडिया और इस घोटाले से कोई संबंध नहीं है और डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी झूठ बोल रहे हैं तथा इसकी शुरुआत तत्काल इस पूरे मामले की गंभीर जांच की घोषणा से हो...............

युवराज” की मर्जी के सामने संसद की क्या हैसियत…?

 जैसा कि आप सभी ज्ञात है कि हम अपने सांसद चुनते हैं ताकि जब भी संसद सत्र चल रहा हो वे वहाँ नियमित उपस्थिति रखें, अपने क्षेत्र की समस्याओं को संसद में प्रश्नों के जरिये उठाएं, तथा उन्हें मिलने वाली सांसद निधि की राशि का उपयोग गरीबों के हित में सही ढंग से करें।
 सूचना के अधिकार तहत प्राप्त एक जानकारी के अनुसार, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कोनियुक्तकरने वाली सुप्रीम कमाण्डर”, तथा देश के भावी युवा(?) प्रधानमंत्री,इस मोर्चे पर बेहद फ़िसड्डी साबित हुए हैं। 15वीं लोकसभा की अब तक कुल 183 बैठकें हुई हैं, जिसमें सोनिया की उपस्थिति रही 77 दिन (42%), जबकि राहुल बाबा 80 दिन (43%) उपस्थित रहे (मेनका गाँधी की उपस्थिति 129 दिन एवं वरुण की उपस्थिति 118 दिन रही)। इस मामले में सोनिया जी को थोड़ी छूट दी जा सकती है, क्योंकि संसद के पूरे मानसून सत्र में वे अपनी रहस्यमयीबीमारी की वजह से नहीं आईं।

 इसी प्रकार संसद में प्रश्न पूछने के मामले में रिकॉर्ड के अनुसार वरुण गाँधी ने 15वीं संसद में अब तक कुल 89 प्रश्न पूछे हैं और मेनका गाँधी ने 137 प्रश्न पूछे हैं, जबकि दूसरी ओर संसद के लगातार तीन सत्रों में मम्मी-बेटूकी जोड़ी ने एक भी सवाल नहीं पूछा (क्योंकि शायद उन्हें संसद में सवाल पूछने की जरुरत ही नहीं है, उनके गुलाम उन्हें उनके घर जाकर रिपोर्टदेते हैं)। जहाँ तक बहस में भाग लेने का सवाल है, मेनका गाँधी ने कुल 12 बार बहस में हिस्सा लिया और वरुण गाँधी ने 2 बार, वहीं सोनिया गाँधी ने किसी भी बहस में हिस्सा नहीं लिया, तथाअमूल बेबीने सिर्फ़ एक बार (अण्णा हजारे के वाले मसले पर) चार पेज का लिखा हुआभाषण पढ़ा।

 सांसदों के कामों को आँकने में सांसद निधि एक महत्वपूर्ण घटक होता है। इस निधि को सांसद अपने क्षेत्र में स्वविवेक से सड़क, पुल अथवा अस्पताल की सुविधाओं पर खर्च कर सकते हैं। जून 2009 से अगस्त 2011 तक प्रत्येक सांसद को 9 करोड़ की सांसद निधि आवंटित की गई। इसमें से सोनिया गाँधी ने अब तक सिर्फ़ 1.94 करोड़ (21%) एवं राहुल बाबा ने 0.18 करोड़ (मात्र 3%) पैसे का ही उपयोग अपने क्षेत्र के विकास हेतु किया है। वहीं मेनका गाँधी ने इस राशि में से 2.25 करोड़ (25%) तथा वरुण ने अपने संसदीय क्षेत्र के लिए 3.17 करोड़ (36%) खर्च कर लिए हैं।

 ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सत्ताधारी गठबंधन की प्रमुख होने के बावजूदसोनिया-राहुल का व्यवहार संसद के प्रति इतना नकारात्मक और उपेक्षा वाला है तो फ़िर वे आए दिन अन्य राज्य सरकारों को नैतिकता का उपदेश कैसे दे सकते हैं? मनरेगा जैसी ना जाने कितनी योजनाएं हैं, रायबरेली-अमेठी की सड़कों की हालत खस्ता है, फ़िर भी पता नहीं क्यों राहुल बाबा ने यहाँ अपनी निधि का पैसा खर्च क्यों नहीं किया? जबकि मेनका-वरुण का परफ़ॉर्मेंसउनके अपने-अपने संसदीय क्षेत्रों में काफ़ी बेहतर है। परन्तु "महारानी" और "युवराज" की जब मर्जी होगी तब वे संसद में आएंगे और इच्छा हुई तो कभीकभार सवाल भी पूछेंगे, हम-आप उनसे इस सम्बन्ध में सवाल करने वाले कौन होते हैं। जब उन्होंने आज तक सरकारी खर्च पर होने वाली विदेश यात्राओं का हिसाब ही नहीं दिया, तो संसद में उपस्थिति तो बहुत मामूली बात है। "राजपरिवार" की मर्जी होगी तब जवाब देंगेसंसद की क्या हैसियत है उनके सामने?

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 अब समझ में आया कि आखिर मनमोहन सिंह साहब सूचना के अधिकार कानून की बाँह क्यों मरोड़ना चाहते हैं। कुछ सिरफ़िरेलोग सोनिया-राहुल से सम्बन्धित इसी प्रकार की ऊलजलूलसूचनाएं माँग-माँगकर, सरकार का टाइम खराब करते हैं, सोनिया का ज़ायका खराब करते हैं और उनके गुलामों का हाजमा खराब करते हैं