Wednesday 19 October 2011

सूअर की खेती


पूरी दुनिया मे भारी मात्रा मे सूअर की खेतीव सामने भारत के रूप मे बड़ा अंधा ग्राहक

 सूअर की खेती अर्थात सूअर को मांस और अन्य उत्पाद के लिए पालना । यूरोप मे सूअर व्यवसाय या सूअर खेती बहुत समय से चली आ रही है वहाँ के लोग मांस से अर्थ सूअर के मांस से ही लेते है । कोई दिन ऐसा नहीं की सूअर का स्वाद मुंह से न लगे । इसाइयों के बड़े पर्व पर सूअर को मारकर उसके मुंह से स्टील की मजबूत पाइप डालकर उसे आग के ऊपर रख देते है बारी बारी से घुमाकर फिर भूनकर खाया जाता है !

हम चटनी को सॉस कहने लगे है उस सॉस शब्द की उत्पति ही सूअर के मांस और आंतों से बनाए जाने वाले सौस ( Sause, sausage ) से हुई है

सूअर की खेती क्यूँ करते है अंग्रेज़ ?

 सूअर का मांस यूरोप और चीन जैसे देशों मे अधिक लोकप्रिय है, जो अत्यादिक शीत प्रदेश है वहाँ सूअर के मांस का अधिक प्रयोग होता है ,सूअर के सिर से मस्तिष्क चीज’ (head cheese) सूअर के मांस से पकौड़े जो इंगलेंड, औस्ट्रेलिया, न्यूजीलेंड और इटली मे काफी लोकप्रिय है, हमारे देश मे अच्छे ग्लेमर से भरे विज्ञापन देखकर के केएफ़सी (KFC) और मेकडोनाल्ड के तथाकथित क्रिस्पी’ popcon – chicken नामक मांस के पकौड़े शाकाहारी लोग भी खाने लगे है यह माल का नहीं, विज्ञापन और कंपनी की मिलीभगत का कमाल है । लोगो को मांसाहार की और खींचने का षड्यंत्र । मैंने कई शाकाहारियों को अक्सर मुंबई मे देखा है ये मेकडोनाल्ड, केएफ़सी, सबवे के लुभावनेचिकन टिकी और केएफ़सी पोपकोर्नखाते हुए । हैरत की बात है की कई लोग आश्चर्य जताते है की ये शाकाहारी पदार्थ नहीं हैं ।

यूरोप का सबसे सस्ता और लोकप्रिय खाना है sausage जो सूअर के मांस और आंतों से बनाया जाता है मांस को बारीक पीस करके उसे आंतों मे भरकर के भूनकर या कही कही उबाल कर खाया जाता है ।

इसके अलावा बेकन, ब्लेक पुडिंग, अतड़ियाँ का मुख्य रूप से खाद्य व्यवसाय होता है

सूअर के मांस से कुछ अम्ल का उत्पादन होता है जैसे सोडियम इनोसिनेट :

सोडियम इनोसिनेट : सोडियम इनोसिनेट अम्ल (E631) एक प्रकृतिक अम्ल है जो औद्योगिक रूप से सूअर के मांस या मछली मे निकाला जाता है

 उत्पादन :

यह जलीय जीवों से उत्पन्न किया जाता है जैसे आंशिक रूप से मछली से ।

शराब बनाने मे जिस खमीर का प्रयोग होता है उससे

सूअर की चर्बी या मांस से ।

गुण : स्वाद को बढ़ाने मे, इनोसिनिक और इनोसिनेट मे उमामी स्वादनहीं होता लेकिन यह बाकी व्यंजन को निखारता है चाहे नमक की मात्रा हो या ना हो ।

उत्पाद : यह अम्ल कई खाद्य पदार्थो मे प्रयुक्त होता है

कई दैनिक भोज्य पदार्थो मे इसका प्रयोग होता है

 12 सप्ताह से कम बच्चो को दिये जाने वाले खाद्य पदार्थो मे यह अम्ल की मात्रा बिलकुल नहीं होनी चाहिए !

बाजार मे मिलने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आलू चिप्स एवं नूडल्स मे इस अम्ल का उपयोग उत्पाद का स्वाद बढ़ाने मे होता है । नूडल्स के साथ मिलने वाले टेस्टमेकर पर कुछ लिखा नहीं होता है की उसमे कौनसा पदार्थ का उपयोग हुआ है क्या आपने इस बात को सोचा ? क्या खा रहे है आप ?

अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनीयां टूथपेस्ट बनाने मे इसका इस्तेमाल करती है

अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनीयां दाढ़ी की क्रीम बनाने मे इसका उपयोग करती है ।

इसके बिना चुइंगम बनाना मुश्किल है और वो सस्ती चुइंगम तो कभी नहीं बन सकती बिना मांस की चर्बी से बनाए गएँ E631 से ।

जानवरो से प्राप्त E631 कम लागत का होता है । अधिकतर E631 जानवरो से ही प्राप्त होता है ।

 दुष्परिणाम : जिन लोगो को गठियाँ और स्वास संबंधी रोगो और अस्थमा की शिकायत है उन्हें इस अम्ल के बने पदार्थो से बचना चाहिए ।

सूअर के मांस खाने वाले और सूअर की खेती करने वाले प्रमुख देश है (आकड़ें2007)

देश सूअर की अनुमानित

संख्या (मिलियन)

चीन 425

अमेरिका 71

ब्राज़ील 35.5

जर्मनी 27.1

वियतनाम 26.1

स्पेन 26

आहार प्रतिबंध : इनोसिनेट सामान्यतः जानवरों की चर्बी से प्राप्त किए जाते है आंशिक रूप से मछलियों से भी प्राप्त होता है । इस प्रकार शाकारियों के लिए इस अम्ल के बने पदार्थ उपयुक्त नहीं है मुस्लिम, यहूदी धर्म के लोगो इससे बने पदार्थों को अस्वीकार करते है क्यूँ की औद्योगिक रूप से यह अम्ल सूअर की चर्बी से प्राप्त होता है

निष्कर्ष : अक्सर कहा जाता है की उमामी स्वादकृतिम रूप से बनाएँ गए E-631 मे नहीं मिल पाता, अक्सर कंपनियाँ अपने ग्राहको को बताती है की उनके e-631 का निर्माण सूअर की चर्बी से नहीं हुआ है रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न हुआ है, लेकिन मुख्य रूप से इसका स्रोत सूअर की चर्बी है, उत्पादक अपने उत्पादों पर लेबल नहीं लगा सकते की उक्त उत्पाद मे सूअर की चर्बी से निकाले गएँ उक्त अम्ल का प्रयोग हुआ है क्योंकि खाने वाले ग्राहक पता नहीं कौन है शाकाहारी या मासाहारी । सूअर की चर्बी से प्राप्त किए गए इस इनोसिनेट अम्ल की लागत काफी कम आती है अतः औद्योगिक रूप से मुख्यतः यह अम्ल सूअर की चर्बी से ही प्राप्त होता है ।

अक्सर आपने देखा होगा की इन कंपनीयों की वैबसाइट पर कंपनियों द्वारा विभिन्न डिस्क्लेमर लिखे रहते है या यह लिखित प्रमाण दिखाया जाता है की की हमारे उत्पाद जानवरों की चर्बी से रहित हैं । मान लो अगर एक कंपनी का कारोबार 200 – 500 – 1000 करोड़ तक है तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी लोगो को बेवकूफ बनाने मे । क्या वह सच बताएगी लोगो को ? भारी मुनाफा ऐसे ही नहीं मिलता आजकल, वैसे भी रिश्वत खाने वाले मीरजफर और जयचंद बहुत है भारत मे, बच जाती है ऐसी कंपनियाँ जैसे 2004 मे कोक पेप्सी बच गई थी शरद पवारों और के हाथो । अगर विदेशी भारत मे हमें लूट सकते है तो वे सब कुछ कर सकते है जो उनके कमाने के आड़े आएगा

अम्ल (खाद्य) E – कोड उत्पादन उपयोग

 Disodium Guanylate E627 सुखी मछलियाँ, समुंद्री सिवार ग्लूटामिक अम्ल बनाने मे

 Dipotassium guanylate E628 सुखी मछलियाँ स्वाद बढ़ाने मे

 Calcium guanylate E629 जानवरो की चर्बी स्वाद बढ़ाने मे

 Inocinic Acid E630 सुखी मछलियाँ स्वाद बढ़ाने मे

 Disodium inosinate E631 वृहद मात्रा मे सूअर, मछली चिप्स, नूडल्स में चिकनाहट देने एवं स्वाद बढ़ाने मे

इन सबके अलावा हमारे दैनिक जीवन मे घरेलू वस्तुओं मे जानवरो के जीवन और खून का कितना योगदान होता है लिपिस्टिक बनाने मे गाय के मस्तिष्क का उपयोग होता है सौन्दर्य प्रसाधन मेकअप का सामान बनाने की बहुत सी सामाग्री चीन मे जानवरो से सस्ती दरो पर बनाकर के अमेरिकी कंपनियों को एक्सपोर्ट की जाती है फिर अमेरिका से भारत आती है शीत प्रदेशों के जानवरो के फर के कपड़े, जूते, बेल्ट इत्यादि भी बनाएँ जाते है चीन सबसे बड़ा फर उत्पादक देश है फर प्राप्त करने के लिए जानवर की पूरे शरीर की चमड़ी सबूत शरीर से निकाली जाती है 5-10 घंटे जानवर खून से लथपथ तड़पता रहता है । तब जाकर जानवर से मखमली / फर कोट तैयार र्होते है जिनका उपयोग फेशन उद्योग मे भी बहुत होता है !

Saturday 15 October 2011

नेहरू-गाँधी राजवंश (?)

(प्रस्तुत लेख में दी गई जानकारियाँ विभिन्न पुस्तकों के अंशों, वेबसाईटों की सामग्रियों से संकलित की गई हैं, जिनके लिंक्स साथ में दिये गये हैं…)
"नेहरू-गाँधी राजवंश(?) की असलियत"...
 शुरुआत होती है "गंगाधर" (गंगाधर नेहरू नहीं), यानी मोतीलाल नेहरू के पिता से । नेहरू उपनाम बाद में मोतीलाल ने खुद लगा लिया था, जिसका शाब्दिक अर्थ था "नहर वाले", वरना तो उनका नाम होना चाहिये था "मोतीलाल धर", लेकिन जैसा कि इस खानदान की नाम बदलने की आदत थी उसी के मुताबिक उन्होंने यह किया । रॉबर्ट हार्डी एन्ड्रूज की किताब "ए लैम्प फ़ॉर इंडिया - द स्टोरी ऑफ़ मदाम पंडित" में उस तथाकथित गंगाधर का चित्र छपा है, जिसके अनुसार गंगाधर असल में एक सुन्नी मुसलमान था, जिसका असली नाम गयासुद्दीन गाजी था. लोग सोचेंगे कि यह खोज कैसे हुई ?

दरअसल नेहरू ने खुद की आत्मकथा में एक जगह लिखा था कि उनके दादा अर्थात मोतीलाल के पिता गंगा धर थे, ठीक वैसा ही जवाहर की बहन कृष्णा ने भी एक जगह लिखा है कि उनके दादाजी मुगल सल्तनत (बहादुरशाह जफ़र के समय) में नगर कोतवाल थे. अब इतिहासकारों ने खोजबीन की तो पाया कि बहादुरशाह जफ़र के समय कोई भी हिन्दू इतनी महत्वपूर्ण ओहदे पर नहीं था..और खोजबीन पर पता चला कि उस वक्त के दो नायब कोतवाल हिन्दू थे नाम थे भाऊ सिंह और काशीनाथ, जो कि लाहौरी गेट दिल्ली में तैनात थे, लेकिन किसी गंगा धर नाम के व्यक्ति का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला (मेहदी हुसैन की पुस्तक : बहादुरशाह जफ़र और १८५७ का गदर, १९८७ की आवृत्ति), रिकॉर्ड मिलता भी कैसे, क्योंकि गंगा धर नाम तो बाद में अंग्रेजों के कहर से डर कर बदला गया था, असली नाम तो था "गयासुद्दीन गाजी" । जब अंग्रेजों ने दिल्ली को लगभग जीत लिया था,तब मुगलों और मुसलमानों के दोबारा विद्रोह के डर से उन्होंने दिल्ली के सारे हिन्दुओं और मुसलमानों को शहर से बाहर करके तम्बुओं में ठहरा दिया था (जैसे कि आज कश्मीरी पंडित रह रहे हैं), अंग्रेज वह गलती नहीं दोहराना चाहते थे, जो हिन्दू राजाओं (पृथ्वीराज चौहान ने) ने मुसलमान आक्रांताओं को जीवित छोडकर की थी, इसलिये उन्होंने चुन-चुन कर मुसलमानों को मारना शुरु किया, लेकिन कुछ मुसलमान दिल्ली से भागकर पास के इलाकों मे चले गये थे । उसी समय यह परिवार भी आगरा की तरफ़ कूच कर गया...हमने यह कैसे जाना ? नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि आगरा जाते समय उनके दादा गंगा धर को अंग्रेजों ने रोक कर पूछताछ की थी, लेकिन तब गंगा धर ने उनसे कहा था कि वे मुसलमान नहीं हैं, बल्कि कश्मीरी पंडित हैं और अंग्रेजों ने उन्हें आगरा जाने दिया... बाकी तो इतिहास है ही । यह "धर" उपनाम कश्मीरी पंडितों में आमतौर पाया जाता है, और इसी का अपभ्रंश होते-होते और धर्मान्तरण होते-होते यह "दर" या "डार" हो गया जो कि कश्मीर के अविभाजित हिस्से में आमतौर पाया जाने वाला नाम है । लेकिन मोतीलाल ने नेहरू नाम चुना ताकि यह पूरी तरह से हिन्दू सा लगे । इतने पीछे से शुरुआत करने का मकसद सिर्फ़ यही है कि हमें पता चले कि "खानदानी" लोग क्या होते हैं ।

फ़िलहाल गाँधी-नेहरू परिवार पर फ़ोकस...

अपनी पुस्तक "द नेहरू डायनेस्टी" में लेखक के.एन.राव लिखते हैं....ऐसा माना जाता है कि जवाहरलाल, मोतीलाल नेहरू के पुत्र थे और मोतीलाल के पिता का नाम था गंगाधर । यह तो हम जानते ही हैं कि जवाहरलाल की एक पुत्री थी इन्दिरा प्रियदर्शिनी नेहरू । कमला नेहरू उनकी माता का नाम था, जिनकी मृत्यु स्विटजरलैण्ड में टीबी से हुई थी । कमला शुरु से ही इन्दिरा के फ़िरोज से विवाह के खिलाफ़ थीं... क्यों ? यह हमें नहीं बताया जाता...लेकिन यह फ़िरोज गाँधी कौन थे ? फ़िरोज उस व्यापारी के बेटे थे, जो "आनन्द भवन" में घरेलू सामान और शराब पहुँचाने का काम करता था...नाम... बताता हूँ.... पहले आनन्द भवन के बारे में थोडा सा... आनन्द भवन का असली नाम था "इशरत मंजिल" और उसके मालिक थे मुबारक अली... मोतीलाल नेहरू पहले इन्हीं मुबारक अली के यहाँ काम करते थे...खैर...हममें से सभी जानते हैं कि राजीव गाँधी के नाना का नाम था जवाहरलाल नेहरू, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के नाना के साथ ही दादा भी तो होते हैं... और अधिकतर परिवारों में दादा और पिता का नाम ज्यादा महत्वपूर्ण होता है, बजाय नाना या मामा के... तो फ़िर राजीव गाँधी के दादाजी का नाम क्या था.... किसी को मालूम है ? नहीं ना... ऐसा इसलिये है, क्योंकि राजीव गाँधी के दादा थे नवाब खान, एक मुस्लिम व्यापारी जो आनन्द भवन में सामान सप्लाय करता था और जिसका मूल निवास था जूनागढ गुजरात में... नवाब खान ने एक पारसी महिला से शादी की और उसे मुस्लिम बनाया... फ़िरोज इसी महिला की सन्तान थे और उनकी माँ का उपनाम था "घांदी" (गाँधी नहीं)... घांदी नाम पारसियों में अक्सर पाया जाता था...विवाह से पहले फ़िरोज गाँधी ना होकर फ़िरोज खान थे और कमला नेहरू के विरोध का असली कारण भी यही था...हमें बताया जाता है कि राजीव गाँधी पहले पारसी थे... यह मात्र एक भ्रम पैदा किया गया है । इन्दिरा गाँधी अकेलेपन और अवसाद का शिकार थीं । शांति निकेतन में पढते वक्त ही रविन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें अनुचित व्यवहार के लिये निकाल बाहर किया था... अब आप खुद ही सोचिये... एक तन्हा जवान लडकी जिसके पिता राजनीति में पूरी तरह से व्यस्त और माँ लगभग मृत्यु शैया पर पडी़ हुई हों... थोडी सी सहानुभूति मात्र से क्यों ना पिघलेगी, और विपरीत लिंग की ओर क्यों ना आकर्षित होगी ? इसी बात का फ़ायदा फ़िरोज खान ने उठाया और इन्दिरा को बहला-फ़ुसलाकर उसका धर्म परिवर्तन करवाकर लन्दन की एक मस्जिद में उससे शादी रचा ली (नाम रखा "मैमूना बेगम") । नेहरू को पता चला तो वे बहुत लाल-पीले हुए, लेकिन अब क्या किया जा सकता था...जब यह खबर मोहनदास करमचन्द गाँधी को मिली तो उन्होंने ताबडतोड नेहरू को बुलाकर समझाया, राजनैतिक छवि की खातिर फ़िरोज को मनाया कि वह अपना नाम गाँधी रख ले.. यह एक आसान काम था कि एक शपथ पत्र के जरिये, बजाय धर्म बदलने के सिर्फ़ नाम बदला जाये... तो फ़िरोज खान (घांदी) बन गये फ़िरोज गाँधी । और विडम्बना यह है कि सत्य-सत्य का जाप करने वाले और "सत्य के साथ मेरे प्रयोग" लिखने वाले गाँधी ने इस बात का उल्लेख आज तक कहीं नहीं किया, और वे महात्मा भी कहलाये...खैर... उन दोनों (फ़िरोज और इन्दिरा) को भारत बुलाकर जनता के सामने दिखावे के लिये एक बार पुनः वैदिक रीति से उनका विवाह करवाया गया, ताकि उनके खानदान की ऊँची नाक (?) का भ्रम बना रहे । इस बारे में नेहरू के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक "रेमेनिसेन्सेस ऑफ़ थे नेहरू एज" (पृष्ट ९४ पैरा २) (अब भारत सरकार द्वारा प्रतिबन्धित) में लिखते हैं कि "पता नहीं क्यों नेहरू ने सन १९४२ में एक अन्तर्जातीय और अन्तर्धार्मिक विवाह को वैदिक रीतिरिवाजों से किये जाने को अनुमति दी, जबकि उस समय यह अवैधानिक था, कानूनी रूप से उसे "सिविल मैरिज" होना चाहिये था" । यह तो एक स्थापित तथ्य है कि राजीव गाँधी के जन्म के कुछ समय बाद इन्दिरा और फ़िरोज अलग हो गये थे, हालाँकि तलाक नहीं हुआ था । फ़िरोज गाँधी अक्सर नेहरू परिवार को पैसे माँगते हुए परेशान किया करते थे, और नेहरू की राजनैतिक गतिविधियों में हस्तक्षेप तक करने लगे थे । तंग आकर नेहरू ने फ़िरोज का "तीन मूर्ति भवन" मे आने-जाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया था । मथाई लिखते हैं फ़िरोज की मृत्यु से नेहरू और इन्दिरा को बडी़ राहत मिली थी । १९६० में फ़िरोज गाँधी की मृत्यु भी रहस्यमय हालात में हुई थी, जबकि वह दूसरी शादी रचाने की योजना बना चुके थे । अपुष्ट सूत्रों, कुछ खोजी पत्रकारों और इन्दिरा गाँधी के फ़िरोज से अलगाव के कारण यह तथ्य भी स्थापित हुआ कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी (या श्रीमती फ़िरोज खान) का दूसरा बेटा अर्थात संजय गाँधी, फ़िरोज की सन्तान नहीं था, संजय गाँधी एक और मुस्लिम मोहम्मद यूनुस का बेटा था । संजय गाँधी का असली नाम दरअसल संजीव गाँधी था, अपने बडे भाई राजीव गाँधी से मिलता जुलता । लेकिन संजय नाम रखने की नौबत इसलिये आई क्योंकि उसे लन्दन पुलिस ने इंग्लैण्ड में कार चोरी के आरोप में पकड़ लिया था और उसका पासपोर्ट जब्त कर लिया था । ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्ण मेनन ने तब मदद करके संजीव गाँधी का नाम बदलकर नया पासपोर्ट संजय गाँधी के नाम से बनवाया था । अब संयोग पर संयोग देखिये... संजय गाँधी का विवाह "मेनका आनन्द" से हुआ... कहाँ... मोहम्मद यूनुस के घर पर (है ना आश्चर्य की बात)... मोहम्मद यूनुस की पुस्तक "पर्सन्स, पैशन्स एण्ड पोलिटिक्स" में बालक संजय का इस्लामी रीतिरिवाजों के मुताबिक खतना बताया गया है, हालांकि उसे "फ़िमोसिस" नामक बीमारी के कारण किया गया कृत्य बताया गया है, ताकि हम लोग (आम जनता) गाफ़िल रहें.... मेनका जो कि एक सिख लडकी थी, संजय की रंगरेलियों की वजह से गर्भवती हो गईं थीं और फ़िर मेनका के पिता कर्नल आनन्द ने संजय को जान से मारने की धमकी दी थी, फ़िर उनकी शादी हुई और मेनका का नाम बदलकर "मानेका" किया गया, क्योंकि इन्दिरा गाँधी को "मेनका" नाम पसन्द नहीं था (यह इन्द्रसभा की नृत्यांगना टाईप का नाम लगता था), पसन्द तो मेनका, मोहम्मद यूनुस को भी नहीं थी क्योंकि उन्होंने एक मुस्लिम लडकी संजय के लिये देख रखी थी । फ़िर भी मेनका कोई साधारण लडकी नहीं थीं, क्योंकि उस जमाने में उन्होंने बॉम्बे डाईंग के लिये सिर्फ़ एक तौलिये में विज्ञापन किया था । आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि संजय गाँधी अपनी माँ को ब्लैकमेल करते थे और जिसके कारण उनके सभी बुरे कृत्यों पर इन्दिरा ने हमेशा परदा डाला और उसे अपनी मनमानी करने की छूट दी । ऐसा प्रतीत होता है कि शायद संजय गाँधी को उसके असली पिता का नाम मालूम हो गया था और यही इन्दिरा की कमजोर नस थी, वरना क्या कारण था कि संजय के विशेष नसबन्दी अभियान (जिसका मुसलमानों ने भारी विरोध किया था) के दौरान उन्होंने चुप्पी साधे रखी, और संजय की मौत के तत्काल बाद काफ़ी समय तक वे एक चाभियों का गुच्छा खोजती रहीं थी, जबकि मोहम्मद यूनुस संजय की लाश पर दहाडें मार कर रोने वाले एकमात्र बाहरी व्यक्ति थे...। एम.ओ.मथाई अपनी पुस्तक के पृष्ठ २०६ पर लिखते हैं - "१९४८ में वाराणसी से एक सन्यासिन दिल्ली आई जिसका काल्पनिक नाम श्रद्धा माता था । वह संस्कृत की विद्वान थी और कई सांसद उसके व्याख्यान सुनने को बेताब रहते थे । वह भारतीय पुरालेखों और सनातन संस्कृति की अच्छी जानकार थी । नेहरू के पुराने कर्मचारी एस.डी.उपाध्याय ने एक हिन्दी का पत्र नेहरू को सौंपा जिसके कारण नेहरू उस सन्यासिन को एक इंटरव्यू देने को राजी हुए । चूँकि देश तब आजाद हुआ ही था और काम बहुत था, नेहरू ने अधिकतर बार इंटरव्य़ू आधी रात के समय ही दिये । मथाई के शब्दों में - एक रात मैने उसे पीएम हाऊस से निकलते देखा, वह बहुत ही जवान, खूबसूरत और दिलकश थी - । एक बार नेहरू के लखनऊ दौरे के समय श्रध्दामाता उनसे मिली और उपाध्याय जी हमेशा की तरह एक पत्र लेकर नेहरू के पास आये, नेहरू ने भी उसे उत्तर दिया, और अचानक एक दिन श्रद्धा माता गायब हो गईं, किसी के ढूँढे से नहीं मिलीं । नवम्बर १९४९ में बेंगलूर के एक कॉन्वेंट से एक सुदर्शन सा आदमी पत्रों का एक बंडल लेकर आया । उसने कहा कि उत्तर भारत से एक युवती उस कॉन्वेंट में कुछ महीने पहले आई थी और उसने एक बच्चे को जन्म दिया । उस युवती ने अपना नाम पता नहीं बताया और बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद ही उस बच्चे को वहाँ छोडकर गायब हो गई थी । उसकी निजी वस्तुओं में हिन्दी में लिखे कुछ पत्र बरामद हुए जो प्रधानमन्त्री द्वारा लिखे गये हैं, पत्रों का वह बंडल उस आदमी ने अधिकारियों के सुपुर्द कर दिया ।

मथाई लिखते हैं - मैने उस बच्चे और उसकी माँ की खोजबीन की काफ़ी कोशिश की, लेकिन कॉन्वेंट की मुख्य मिस्ट्रेस, जो कि एक विदेशी महिला थी, बहुत कठोर अनुशासन वाली थी और उसने इस मामले में एक शब्द भी किसी से नहीं कहा.....लेकिन मेरी इच्छा थी कि उस बच्चे का पालन-पोषण मैं करुँ और उसे रोमन कैथोलिक संस्कारों में बडा करूँ, चाहे उसे अपने पिता का नाम कभी भी मालूम ना हो.... लेकिन विधाता को यह मंजूर नहीं था.... खैर... हम बात कर रहे थे राजीव गाँधी की...जैसा कि हमें मालूम है राजीव गाँधी ने, तूरिन (इटली) की महिला सानिया माईनो से विवाह करने के लिये अपना तथाकथित पारसी धर्म छोडकर कैथोलिक ईसाई धर्म अपना लिया था । राजीव गाँधी बन गये थे रोबेर्तो और उनके दो बच्चे हुए जिसमें से लडकी का नाम था "बियेन्का" और लडके का "रॉल" । बडी ही चालाकी से भारतीय जनता को बेवकूफ़ बनाने के लिये राजीव-सोनिया का हिन्दू रीतिरिवाजों से पुनर्विवाह करवाया गया और बच्चों का नाम "बियेन्का" से बदलकर प्रियंका और "रॉल" से बदलकर राहुल कर दिया गया... बेचारी भोली-भाली आम जनता !

प्रधानमन्त्री बनने के बाद राजीव गाँधी ने लन्दन की एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स में अपने-आप को पारसी की सन्तान बताया था, जबकि पारसियों से उनका कोई लेना-देना ही नहीं था, क्योंकि वे तो एक मुस्लिम की सन्तान थे जिसने नाम बदलकर पारसी उपनाम रख लिया था । हमें बताया गया है कि राजीव गाँधी केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के स्नातक थे, यह अर्धसत्य है... ये तो सच है कि राजीव केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में मेकेनिकल इंजीनियरिंग के छात्र थे, लेकिन उन्हें वहाँ से बिना किसी डिग्री के निकलना पडा था, क्योंकि वे लगातार तीन साल फ़ेल हो गये थे... लगभग यही हाल सानिया माईनो का था...हमें यही बताया गया है कि वे भी केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की स्नातक हैं... जबकि सच्चाई यह है कि सोनिया स्नातक हैं ही नहीं, वे केम्ब्रिज में पढने जरूर गईं थीं लेकिन केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में नहीं । सोनिया गाँधी केम्ब्रिज में अंग्रेजी सीखने का एक कोर्स करने गई थी, ना कि विश्वविद्यालय में (यह बात हाल ही में लोकसभा सचिवालय द्वारा माँगी गई जानकारी के तहत खुद सोनिया गाँधी ने मुहैया कराई है, उन्होंने बडे ही मासूम अन्दाज में कहा कि उन्होंने कब यह दावा किया था कि वे केम्ब्रिज की स्नातक हैं,। क्रूरता की हद तो यह थी कि राजीव का अन्तिम संस्कार हिन्दू रीतिरिवाजों के तहत किया गया, ना ही पारसी तरीके से ना ही मुस्लिम तरीके से । इसी नेहरू खानदान की भारत की जनता पूजा करती है, एक इटालियन महिला जिसकी एकमात्र योग्यता यह है कि वह इस खानदान की बहू है आज देश की सबसे बडी पार्टी की कर्ताधर्ता है और "रॉल" को भारत का भविष्य बताया जा रहा है । मेनका गाँधी को विपक्षी पार्टियों द्वारा हाथोंहाथ इसीलिये लिया था कि वे नेहरू खानदान की बहू हैं, इसलिये नहीं कि वे कोई समाजसेवी या प्राणियों पर दया रखने वाली हैं....और यदि कोई सानिया माइनो की तुलना मदर टेरेसा या एनीबेसेण्ट से करता है तो उसकी बुद्धि पर तरस खाया जा सकता है और हिन्दुस्तान की बदकिस्मती पर सिर धुनना ही होगा...

ये वही मुसलमान है जो कभी हिन्दुस्तान के बादशाह थे

फिरंगियों ने हिंदुस्तान पर क़ब्ज़ा हम मुस्लिमो से लिया इसलिए हम उनके सबसे बड़े दुश्मन थे और फिरंगियों को डर था की कही मुस्लिम हमे अपने देश से बहार ना करदे इसलिए उन्होंने मुसलमानों का दमन किया और देश में मज़हबी नफरत के बीज बो दिए और देश की एकता को तोड़ने के लिए उन्होंने हिन्दू मुस्लिमो को बाट दिया ताकि ये दोनों एक होकर उन्हें देश से बहार न कर सके और आपस में ही लड़ते रहे इस काम के लिए उन्होंने बकिम चाँ...द चटर्जी जेसे कुछ हिन्दुओ को ख़रीदा और मुसलमानों के खिलाफ कुछ हिन्दुओ को गुमराह करवा दिया फिर फिरंगियों ने बाबरी मस्जिद मुद्दे को जन्म दिलवा दिया और कुछ हिन्दुओ को वो बात बता दी जो थी ही नही अगर होती तो तुलसीदास जी को पहले पता होता और उनसे पहले लोगो को भी पता होता और वो लिखते भी और इसके बाद फिरंगियों ने सत्ता के लिए देश में नफरत के बीज बो दिए ....

उसके बाद नेहरु जिन्ना और पटेल ने सत्ता के लिए देश को मज़हबी हिंसा में झोक दिया और देश का बटवारा कर लिया जिसका सबसे जादा नुकसान मुसलमानों को हुआ उस वक़्त अराजकता का माहोल बना कर देश को नफरत के चूल्हे में झोक दिया गया क्योकि अगर मुसलमानों को बटते न तो उनका राजनितिक शोषण नही किया जा सकता था क्योकि वो मुस्लिम लीग के साथ भी जा सकते थे और फिर ना तो मुसलमानों कि अवाज़ को दबाया जा सकता था और ना मुसलमानों को सियासी मोहरा बनाया जा सकता था क्योकि मुसलमानों के पास उनकी रहनुमाई करने के लिए एक सियासी पार्टी मोजूद होती लेकिन कांग्रेस की चाले जिन्ना को भड़काने में कामयाब हुयी और जिन्ना ने अपने हट के आगे बेहिसाब लोगो को कटवा दिया लेकिन हिन्दुस्तान को अपनी माँ मानने वाले मुसलमानों ने जिन्ना का साथ ना दिया और कांग्रेस के साथ चले गये इस मिटटी में हमारा खून शामिल था हमने आजादी के लिए अपने खून को पानी की तरह बहाया था और इस तरह देश के टुकड़े ही मुसलमानों को कमज़ोर करने के लिए करवाए गए थे और फिर अपने मकसद में कामयाब होते हुए हिनुस्तान में मुसलमनो के रहनुमा कांग्रेस बन गयी और कांग्रेस ने हिंदुस्तान पर अपना परचम फेहरा दिया और लगभग ४ दशको तक कांग्रेस के शासन का दबदबा रहा..

फिर कांग्रेस की तानाशाही से परेशां मुसलमानों ने दूसरी पार्टियों की तरफ भी रुख किया लेकिन मुसलमानों की सियासी हेसियत इतनी कमज़ोर हो चुकी थी की वो एक फूटबाल की तरह हो गयी एक पार्टी से लात खाकर दुसरे के पास जाना मुसलमानों की मज़बूरी बन गयी और सभी पार्टियों मुसलमानों को अपने फायेदे के लिए अपने पैरो से घुमाती रही..

ये वही मुसलमान था जो कभी हिन्दुस्तान का बादशाह था

इसके बाद अडवानी ने रथ यात्रा निकाल कर पहले से ही टूट चुके और घुटनों के बल hath जोड़ कर बेठे मुसलमानों को दुश्मन करार देते हुए मुसलमानों के खिलाफ एकजुटता का आवाहन करते हुए सत्ता तक पहुचने के लिए शोर्टकट हासिल कर लिया कांगेरसी शासन के वक़्त में मुसलमानों का आर्थिक और सामाजिक दमन किया जा चूका था और सियासी पार्टियों के मोहताज मुस्लमान बाबरी मस्जिद की शहादत तक सब समझ गये लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और मुसलामन हिंदुत्वा नाम के आतंक से बचने के लिए सियासी पार्टियों के पीछे दुबकने लगे और वोट बैंक बनते रहे जिसका दिल चाह कुछ मुसलमानों को ख़रीदा और मुसलमानों का रहनुमा साबित कर दिया फिर सभी लोग मलाई खाते रहे और जिस बीजेपी को मुस्लिम हारे हुआ देखना चाहते थे ये लोग उसी बीजेपी से हाथ मिलाते रहे...

मुस्लमान कटोरा लेकर सभी सियासी पार्टियों से अपने वजूद के लिए भीख मांगता रहा किसी ने इतना भी ना दिया जो कोम फिर कड़ी हो पाती गरीबी से बुख्मारी तक पहुची मुस्लिम कोम अपने बच्चो का पेट भरने के लिए रिक्शा चलाने, चाय बेचने, झुतन साफ़ करने लगी या फिर तलवे चाटने वाला गुलाम बन गयी..

और २००२ में गुजरात में जो कुछ मुसलमानों के साथ हुआ सारे देश ने देखा लेकिन मुसलमानों की हिफाज़त करने के लिए कोई नही आया मुसलमानों की लडकियों को नंगा करके नचाया गया सब देखते रहे नुसलमन लडकियों को हवस का शिकार उनके बाप और भाई की आँखों के सामने बनाया गया और जब लड़की मर गयी तो इन दरिंदो में से कुछ ने नंगे बदन पर चादर दाल दी और मुसलमानों का रहनुमा बन गया हमारा घर जलाया गया, हमे लूटा गया, बेआबरू हम हुए, बेघर हम हुए, यतीम हम बने, और इसके बाद क्या क्या हुआ सब जानते हैं लेकिन आँखे बंद किये हुए है..

1-जो कांग्रेस अपने सांसद अहसान जाफरी को ना बचा सकी वो तुम्हारी हिफाज़त क्या करेगी..??

2-वो मायावती जो दंगो के बाद मोदी का साथ देने गयी थी क्या वो तुम्हारी हो सकती हे..??

3-वो मुलायम सिंह जो चंद वोटो की खातिर बाबरी मस्जिद के गुनाहगार को अपने साथ ले आया क्या वो तुम्हारा रहनुमा हे..??

4-जवाब दो क्यों देश में गुलामो से बुरि ज़िन्दगी जी रहे हो..??

5-कब तक उस कांग्रेस को अपना रहनुमा समझोगे जो बीजेपी की तरह ही तुम्हारी दुशमन हे..??

6-कब तक अपनी इज्ज़त को बेचते रहोगे खुदा को क्या जवाब दोगे मैदाने हश्र में..????

7-2% की गिनती रखने वाले सीखो का पिरधानमंत्री हे आज और तुम लगभग १८% हो तुम क्यों नही बना सकते अपना पिरधानमंत्री..??

8-कांग्रेस का युवराज राहुल गांधी मंच पर खड़े होकर कहता हे की जब मुसलमानों में कोई इस काबिल हुआ तो वो भी पिरधानमंत्री बन जायेगा मैं पूछता सभी मुसलमानों से क्या २० करोर में कोई खुद को इस काबिल नही मानता जो देश चला सके..??

9-तुम जितने भी मुस्लमान मेरी बात सुन रहे हो सब खुद को इस काबिल मानते हो तो बोलते क्यों नही..??

10-अपना हक मांगते क्यों नही..??

11-एकजुट होकर आते क्यों नही..??

कब तक ऐसे शर्मसार होते रहोगे तुम लोग अब उठो और एक दुसरे का हाथ पकड़ कर इतनी बुलंद आवाज़ ने नारा दो ताकि अब तक मुसलमानों को मोहरा बनाने वालो के क़दमो की ज़मीन हिल जाये

हिन्दुस्तान के बादशाह हम थे हमने अपना खून देकर देश की हिफाज़त की हे छोटे छोटे टुकडो में बटे देश को हमने अखंड भारत बनाया था लेकिन आज हमे विदेशी कहा जाता हे देशद्रोही माना जाता हे और वो लोग जो आजादी की लडाई में फिरंगियों के साथी थे आज सबसे बड़े देशभक्त कहलाते हे हमारी क़ुरबानी को इतिहास से हटा कर कूड़े के ढेर पर फेक दिया हे हमारी देश के लिए दी गयी कुर्बानी को ऐसे ही जला दिया गया हे जेसे दंगो में हमे जिंदा जलाया जाता हे और अगर तुम अब भी न जागे तो तुम्हारे बच्चो को अमन का हिन्दुस्तान न मिल सकेगा............jay hind