Thursday 22 December 2011

सरकार नहीं चाहती वक्फ संपत्तियों का संरक्षक योग्य व्यक्ति बनें


देश में वक्फ संपत्तियों की खुलेआम लूट कोई नई बात नहीं है और न अब यह बात किसी से छुपी है कि इन संपत्तियों को लूटने में जितना हाथ सरकार का है, उतना ही खुद मुसलमानों का भी है. यह बहुत आसान फार्मूला है कि जिन लोगों को वक्फ बोर्ड की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, वे अपनी इस चोरी को छिपाने के लिए सीधे-सीधे सरकार को सवालों के कठघरे में खड़ा कर दें और देश के आम मुसलमानों को यह कहकर बेवक़ू़फ बनाते रहें कि सरकार ही मुसलमानों के प्रति सांप्रदायिक है तो उन्हें इंसा़फ कैसे मिल सकता है? कहने का मतलब यह हरगिज़ नहीं है कि सारा दोष वक्फ बोर्ड के ज़िम्मेदारों का ही है. एक तऱफ जहां वक्फ बोर्ड से जु़डे कुछ लोग सरकार की करतूतों पर पर्दा डालने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं दूसरी तऱफ सरकार भी ऐसे लोगों को वक्फ की संपत्ति का संरक्षक बना रही है, जो नाजायज़ तरीक़े से अपना पेट भरते रहे हैं. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के एक हिस्से पर देश के नए क़ानून मंत्री सलमान खुर्शीद का़फी नाराज़ हैं, क्योंकि रिपोर्ट का यह हिस्सा वक्फ बोर्ड के बारे में है. इसमें कहा गया है कि इस बात का कोई कारण नहीं है कि वक्फ बोर्ड की देखरेख के लिए न केवल किसी ऐसे वरिष्ठ अधिकारी की नियुक्ति की जाए जिसे मुसलमानों के तौर तरीक़े और उनके मज़हब के बारे में पर्याप्त जानकारी हो, बल्कि उस पद के लिए अलग से एक कैडर का चुनाव टेस्ट के माध्यम से किया जाना चाहिए. इंडियन वक्फ सर्विसेज के गठन के लिए ऐसे अधिकारियों को आगे आना चाहिए, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को यह सुझाव पसंद नहीं आया है. इसलिए सलमान खुर्शीद भी इससे संबंधित उलटे-सीधे बयान देकर मुसलमानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने में लगे हुए हैं.
सलमान जिस पार्टी से संबंध रखते हैं, उसने पिछले 65 वर्षों में देश के मुसलमानों को धोखा देने के अलावा कुछ किया भी है? कांग्रेस ने देश के मुसलमानों के लिए नई दुनिया ही तो बसाई है, जहां पर उन्हें क़दम-क़दम पर देश से व़फादारी का सबूत देना प़डता है, ग़रीबी और भुखमरी का सामना करना प़डता है, सरकारी नौकरियां नहीं मिलती हैं, अच्छे शिक्षण संस्थान स्थापित नहीं होते, अच्छे शिक्षण संस्थानों में दा़खिला नहीं मिलता. उनका समुचित प्रतिनिधित्व न तो फौज में है और न ही पुलिस विभाग में.
सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार, पूरे देश में लगभग पांच लाख वक्फ संपत्तियां हैं, जो तक़रीबन छह लाख एक़ड में फैली हुई हैं. इनकी क़ीमत लगभग छह हज़ार करो़ड रुपये आंकी गई है और बाज़ार के हिसाब से इनकी मौजूदा क़ीमत एक लाख 20 हज़ार करो़ड रुपये बताई जाती है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि वक्फ संपत्तियों से होने वाली सालाना आमदनी केवल 163 करो़ड रुपये है. दूसरी चौंकाने वाली बात यह है कि वक्फ की कुल संपत्तियों में से दो से ढाई लाख एक़ड पर लोगों ने अवैध क़ब्ज़ा कर रखा है, जिसमें सरकार का अवैध क़ब्ज़ा ज़्यादा है. इसके अलावा कुछ दिनों पहले ही आरटीआई के माध्यम से यह जानकारी मिली कि दिल्ली वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन चौधरी मतीन अहमद ने किस तरह वक्फ संपत्ति को 25 पैसे प्रति गज़ पर लीज़ पर दे दिया था. अब सवाल यह पैदा होता है कि सरकार के पास आखिर इन संपत्तियों की देखरेख की उचित व्यवस्था क्यों नहीं है? क्यों लोगों को यह मौक़ा मिल जाता है कि वे वक्फ संपत्तियों को खुलेआम लूटें और उन्हें कोई सज़ा भी न मिले?
अब ज़मीनी सच्चाई पर नज़र डालते हैं. ज़कात फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने सूचना अधिकार क़ानून के तहत 2001 से 2011 के दौरान देश में वक्फ संपत्तियों की स्थिति के बारे में जो जानकारी प्राप्त की है, उसके अनुसार, भारत के 28 वक़्फ बोर्डों में नायब तहसीलदार, बीडीओ यानी ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफिसर, पशु चिकित्सकों आदि को वक्फ बोर्ड का सीईओ नियुक्त किया गया है, जबकि दूसरी तऱफ सच्चर कमेटी के माध्यम से मिली जानकारी के अनुसार, जिन लोगों को वक्फ बोर्ड का सीईओ बनाया गया है, वे कहीं पर दसवीं फेल हैं या यूनानी में स्नातक की शिक्षा प्राप्त करने वाले लोग हैं. ऐसा बहुत कम देखा गया है कि देश के किसी हिस्से में किसी वरिष्ठ अधिकारी को वक्फ बोर्ड के सीईओ पद का दायित्व सौंपा गया है.
ऐसे में मुसलमानों के एक वर्ग की तऱफ से देश में इंडियन वक्फ सर्विसेज का गठन करने की मांग उचित लगती है तो दूसरी तऱफ इसके गठन के लिए अलग से कोई नया क़ानून बनाने की ज़रूरत इसलिए भी नहीं है, क्योंकि भारतीय संविधान के चौदहवें अध्याय में इसकी पूरी गुंजाइश है. हम सभी जानते हैं कि इंडियन सिविल सर्विसेज के तहत देश की व्यवस्था को संभालने के लिए जिन लोगों का चुनाव किया जाता है, वे उच्च शिक्षित होने के साथ-साथ योग्य और कर्तव्यनिष्ठ भी होते हैं. अगर वक्फ बोर्ड के सीईओ की नियुक्ति इंडियन वक्फ सर्विसेज के तहत की जाए तो देश को ऐसे योग्य अधिकारी मिल सकते हैं, जो वक्फ संपत्तियों की खुलेआम लूट पर लगाम कसेंगे और बोर्ड की अव्यवस्था को भी दूर कर सकेंगे. इसके अलावा यह मांग भी उचित लगती है कि देश में हिंदुओं के धार्मिक स्थलों और मंदिरों की देखरेख के लिए हिंदू अधिकारियों का एक अलग कैडर पहले से है, तो फिर मुसलमानों की वक्फ संपत्तियों की देखभाल के लिए अलग मुस्लिम कैडर क्यों नहीं हो सकता?
लेकिन नए क़ानून मंत्री और अल्पसंख्यक मामलों का अलग से मंत्रालय संभालने वाले सलमान खुर्शीद के बयानों से ऐसा लगता है कि वह खुद को मुसलमानों के प्रति कम और कांग्रेस पार्टी के प्रति ज़्यादा व़फादार साबित करने की कोशिश में लगे हुए हैं. तभी तो उन्होंने पिछले दिनों खुद प्रधानमंत्री द्वारा गठित सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर बयान दिया कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कोई क़ुरान नहीं है, जिस पर सवाल नहीं उठाए जा सकते. उन्हें समझना चाहिए कि यह रिपोर्ट किसी दूसरी पार्टी, सरकार या संगठन द्वारा नहीं सौंपी गई है. उनके बयान से तो यही ज़ाहिर होता है कि कांग्रेस सरकार ने केवल मुसलमानों को बहलाने के लिए सच्चर कमेटी का गठन किया था और उसके द्वारा पेश स़िफारिशों पर अमल करने के प्रति वह गंभीर नहीं है. अब जबकि यह रिपोर्ट पेश हुए पांच साल का समय बीत चुका है, कांग्रेस सरकार ने इसकी स़िफारिशों को लागू करने में अब तक कोई गंभीर प्रयास नहीं किया है. और तो और, मनमोहन सिंह ने अपने मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान सलमान खुर्शीद को क़ानून मंत्री बनाकर मुसलमानों को यही संदेश दिया है कि अल्पसंख्यक मामलों का उनके सामने कोई महत्व नहीं है और अल्पसंख्यकों से संबंधित कामकाज फुर्सत के समय में किया जा सकता है. इसके लिए बाक़ायदा अलग से किसी मंत्री को स़िर्फ इसी काम का दायित्व सौंपना बेवक़ू़फी होगी. खुद सलमान खुर्शीद के पास इतना समय नहीं बचता होगा कि वह कार्यालय में जाकर कुछ व़क्त बैठें और लंबित मामलों को निपटाएं. ज़ाहिर है, जो व्यक्ति मुसलमानों की समस्याओं के समाधान के प्रति खुद गंभीर नहीं है, उससे अच्छे बयानों की उम्मीद कैसे की जा सकती है. शायद यही कारण था कि जब सलमान खुर्शीद ने सच्चर कमेटी की रिपोर्ट पर सवालिया निशान लगाए तो सच्चर कमेटी के सचिव अबू सालेह शरी़फ को सलमान खुर्शीद के नाम एक खुला पत्र लिखना प़डा, जिसमें उन्होंने उनके बयान पर न स़िर्फ आपत्ति दर्ज की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि कमेटी ने देश के मुसलमानों को मुख्यधारा में लाने की हरसंभव कोशिश की है और वक़्फ संपत्तियों के लिए अलग से कोई मुस्लिम कैडर गठित कर देने से मुसलमान किसी भी तरह दूसरी क़ौमों से अलग-थलग नहीं प़डेंगे. जबकि सलमान खुर्शीद कह रहे हैं कि हम अपने देश के मुसलमानों के लिए अलग दुनिया नहीं बनाना चाहते.
सलमान जिस पार्टी से संबंध रखते हैं, उसने पिछले 65 वर्षों में देश के मुसलमानों को धोखा देने के अलावा कुछ किया भी है? कांग्रेस ने देश के मुसलमानों के लिए नई दुनिया ही तो बसाई है, जहां पर उन्हें क़दम-क़दम पर देश से व़फादारी का सबूत देना प़डता है, ग़रीबी और भुखमरी का सामना करना प़डता है, सरकारी नौकरियां नहीं मिलती हैं, अच्छे शिक्षण संस्थान स्थापित नहीं होते, अच्छे शिक्षण संस्थानों में दा़खिला नहीं मिलता. उनका समुचित प्रतिनिधित्व न तो फौज में है और न ही पुलिस विभाग में. देश का प्रधानमंत्री बनने के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकता. सलमान साहब, यह मुसलमानों की नई दुनिया ही तो है, जहां उसकी सोच पर पहरे बैठा दिए गए हैं. अब आप किस नई दुनिया की बात कर रहे हैं. सच्चर कमेटी ने तो स़िर्फ मुसलमानों को इस नई और सीमित दुनिया से बाहर निकालने की एक कोशिश की थी, इस पर भी आपको आपत्ति है.

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