Tuesday 20 September 2011

एक और कमी को दूर करना होगा

हिदुस्तान में मुसलमानों की तादाद कोई 15, कोई 20 तो कोई 25 करोड़ कहता है। सही तादाद जो भी हो। लेकिन दुनिया भर में दो-तीन सौ करोड़ मुसलमान बताए जाते हैं। बडी संख्या मे मुस्लिम मुल्क हैं। लेकिन किसी ने भी मीडिया लाइन पर काम नहीं किया। क़लम जो सबसे बड़ा हथियार है। किसी मुसलमान ने इसे हथियाने की कोशिश नहीं की। किसी को इतना शऊर नहीं हुआ की इंटरनेशनल स्तर का कोई मीडिया आपके हाथों में होता। ईसाइयों के हाथों में दुनिया भर का मीडिया है। और वो उसे मनमाने ढंग से इस्तेमाल भी करते हैं। मीडिया ने मुसलमान को पूरी दुनिया में दहशतगर्द साबित करके दिखा दिया है। आप इंटरनेशल छोडो भारत के मुसलमान एक ऐसा प्लेट-फार्म नहीं खड़ा कर सके जहां से कम से कम अपनी बात कह सकें। अपनी आवाज़ बुलंद कर सकें। क्या भारत मैं मुस्लिम साहूकारों की कमी है जो एक न्यूज़ चैनल या फिर राष्ट्रीय स्तर का समाचार पत्र खड़ा नहीं कर सकते। मीडिया की ताक़त का लोगों को अहसास नहीं है। जब सारे दरवाज़े बंद हो जाते हैं तब लोग गुहार लेकर मीडिया की दहलीज़ पर ही पहुंचते हैं। सैंकड़ों नहीं हज़ारों मिसालें ऐसी मौजूद हैं। जहां मीडिया के दख़ल पर ही लोगों को इंसाफ मिला है। हम लोग पांच साल के लिए नेता बनाने के लिए अपना वक़्त और पैसा बर्बाद करते हैं। और जिसको नेता बनाकर संसद या विधानसभा में भेजते हैं वो दूसरों के रहमो करम पर कुछ अपनों का भला कर पाता है। लेकिन मीडिया पर हमने आज तक न पैसा ख़र्च किया न वक़्त। जबकि ये ऐसा औज़ार है जो न सिर्फ हमारे बल्कि न जाने कितने मज़लूमों और मासूमों का मददगार साबित हो सकता है। हमें इस वक़्त मुसलमानों को जागरुक करने के लिए जरूरत है एक तहरीक चलाने की। और तहरीक को मंजिल तक पहुंचाने का काम मीडिया ही करता है। मीडिया के मैदान में  हम एकदम सफा-चट हैं। फिलहाल मीडिया न सही कोई बात नहीं। लेकिन सत्ता की भागेदारी के लिए हमें अब चूकना नहीं है। अगर इस दिशा की तरफ क़दम बढ़े तो मुझे उम्मीद है कि हममें से एक नहीं कई भीमराव अम्बेडकर और कांशीराम पैदा हो जाएंगे। चूंकि दानिशवरों की मुसलमानों में कोई कमी नहीं। कमी है तो सिर्फ हमारे संगठित होने की।

No comments:

Post a Comment