Saturday 17 September 2011

कुछ कड़वा सच

कुछ कड़वा सच
अब बात मुल्क के बटवारे से लेकर आज तक के सियासी माहौल की। बंटवारे के बाद इस मुल्क में मुसलमान ही है जो सबसे ज़्यादा टोटे और ख़सारे में रहा। इस क़ौम का सभी सियासी जमातों ने ख़ून चूसा और मौजूदा दौर में भी चूसा जा रहा है। मगर ये क़ौम है जिसे अपने छले जाने तक का अहसास नहीं। इस की बदक़िस्मती ये है कि इस के साथ हमदर्दी तो बहुतेरे सियासी रहनुमाओं ने दिखाई मगर किसी किसी गर्ज़ से। तारीख़ की ख़ाक बाद में छानेंगे फ़िलहाल तो मौजूदा दौर पर बात करते हैं। देशभर में आज हर क़ौम के नेताओं की भरमार है। दलित हो, पिछड़ा हो, पंडित, बनिया, पंजाबी, आदिवासी और जाने कितनी क़ौमें, गिनना भी आसान नहीं। नेता सबके हैं। मगर नेताविहीन अगर कोई क़ौम है तो सिर्फ मुसलमान। देश की तमाम सियासी जमातों ने इस क़ौम को पिछलग्गू बना लिया पर साझेदार नहीं। इनके वोट का इस्तेमाल तो सब ने किया मगर समसस्याओं को समाधान नहीं। मुसलमानों के बूते पर कांग्रेस ने पचास साल से भी ज़्यादा राज किया। लालू प्रसाद यादव बीस साल तक मुसलमानों के दम पर सत्ता का सुख भोगते रहे। रामविलास   पासवान, मायावती समेत कई नेता इसी वोट बैंक के आधार पर सत्ता की मलाई मारते रहे। लेकिन मैं एक सवाल करता हूं। भले ही टके का हो, देश के किसी भी बड़े सियासी दल का मुखिया कोई मुसलमान क्यों नहीं है? मंसूबे साफ़ ज़ाहिर हैं। समझने वाले समझ भी रहे होंगे। कोई हिंदू नेता हिंदू कट्टरवादी नेता या संगठन को गाली दे दे तो वो मुसलमानों का मसीहा बन जाता है। चाहे वो फिर मुलायम सिंह यादव या फिर कोई और ही क्यों हो। जो खुद को मुल्ला मुलायम सिंह तक कहलवा रहे हैं। पर भोला मुसलमान इस सियासत को नहीं समझ पाता। ये सब वोट बटोरने की ज़ुबान है। इसके अलावा कुछ भी नहीं। मुलायम सिंह मुलायम सिंह ही रहेंगे। वो मुल्ला या मौलाना कभी नहीं बन सकते। मुलायम सिंह अगर आपके इतने ही हमदर्द हैं तो उन्होंने सपा में अपने कद का नेता किसी मुसलमान को क्यों नहीं बनने दिया। उनके सूबे में जिस मुसलमान का क़द बढने लगा उसी के पर कतर डाले। अमर सिंह, आज़म ख़ान जैसे लोग नंबर दो, तीन की पोजीशन पर रहे। जबकि मुसलमानों के वोटों पर ही उन्होंने सत्ता का सुख भोगा है। ऐसा ही हाल दूसरे नेताओं का भी है। मुसलमान को भीख का टुकड़ा तो हर दर से मिला मगर भागीदारी कहीं से नहीं। ग़ौर करने वाली बात है कि हिंदुस्तान की किसी पार्टी में कोई मुसलमान नेता इस क़द और क़ुव्वत का है जो सीना चौड़ा कर मुसलमानों का हक़ मांगने की जुर्रत रखता हो। या फिर अपनी संख्या के आधार पर लोकसभा और राज्य सभा में भागीदारी मांग सके। सच्चाई ये है कि वो अपनी आबादी के आधार पर अपनी पार्टी से मुसलमानों को टिकट तक नहीं दिलवा सकता। सब पिछलग्गू हैं। सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने भले के लिए चाटूगीरी करते नज़र आते हैं। ये सफ़ेदपोश नेता जिनके दिल अंदर से काले हैं अपने स्वार्थ के लिए मुसलमानों को क़दम क़दम पर बेचने का काम कर रहे हैं।

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