Sunday 18 September 2011

क्या बदलेगा मुस्लिम समाज

मो. रफीक चौहान(एडवोकेट)
क्या बदलेगा मुस्लिम समाज, वो समाज कभी नहीं बदल सकता। जिसमें बदलें की चाह और अहसास ही ना हो। बड़ी मशहुर कहावत है। कि सो ते को तो जगाया जा सकता है, लेकिन जो जागता हो उससे कैसे जगाया जा सकता हैमुस्लिम समाज के दीनी रहनुमाओं ने मुस्लमानों को कुछ ऐसा ही बना दिया है। उन्हें मौत के बाद की जिन्दगी के सब्ज बाग दिखाकर, उनकी मौजुदा जिन्दगी का ही नक्शा बदल दिया है। उन्हें मौत के बाद मिलने वाली पाक साफ बीबियों की तो फिकर है, मगर वो मौजुदा बीबियों के हलात से बे-खबर हैं। वो मौत के बाद मिलने वाली असल जिन्दगी के चक्कर में, अपनी मौजुदा जिन्दगी को जहनुम बनाने में लगे हुए है। वो सबाब कमाने के चक्कर में, विकास को भूल रहे हैं। यदि कोई उनसे पुछे कि नबी-ए-करीम हजरत मोहम्मद (सलव) ने एक उम्मी (अनपढ़) होते हुए इल्म यानि शिक्षा के महत्व को कितना समझते थे। आपने फरमाया था- कि आपको शिक्षा यानि तालीम पाने के लिए चाहे चीन क्यों न जाने पढ़े। कुरआन-पाक और हजुर-ए-पाक ने यह कभी नहीं फरमाया कि मुस्लमान डाक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफसर, वैज्ञानिक इत्यादि न बन सकता। लेकिन वो बनेगे कब जब उनको ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाऐगा और वातावरण बनाया जाए। वो कौन कर सकते हैं वो डाक्टर, इंजीनियर, वकील, प्रोफसर, वैज्ञानिक और उसकी अमियत समझने वाले या फिर सही मायनो में मुस्लिम कौम के दर्द को समझने वाला। कोई और दुसरा नहीं।

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