Wednesday 19 October 2011

सूअर की खेती


पूरी दुनिया मे भारी मात्रा मे सूअर की खेतीव सामने भारत के रूप मे बड़ा अंधा ग्राहक

 सूअर की खेती अर्थात सूअर को मांस और अन्य उत्पाद के लिए पालना । यूरोप मे सूअर व्यवसाय या सूअर खेती बहुत समय से चली आ रही है वहाँ के लोग मांस से अर्थ सूअर के मांस से ही लेते है । कोई दिन ऐसा नहीं की सूअर का स्वाद मुंह से न लगे । इसाइयों के बड़े पर्व पर सूअर को मारकर उसके मुंह से स्टील की मजबूत पाइप डालकर उसे आग के ऊपर रख देते है बारी बारी से घुमाकर फिर भूनकर खाया जाता है !

हम चटनी को सॉस कहने लगे है उस सॉस शब्द की उत्पति ही सूअर के मांस और आंतों से बनाए जाने वाले सौस ( Sause, sausage ) से हुई है

सूअर की खेती क्यूँ करते है अंग्रेज़ ?

 सूअर का मांस यूरोप और चीन जैसे देशों मे अधिक लोकप्रिय है, जो अत्यादिक शीत प्रदेश है वहाँ सूअर के मांस का अधिक प्रयोग होता है ,सूअर के सिर से मस्तिष्क चीज’ (head cheese) सूअर के मांस से पकौड़े जो इंगलेंड, औस्ट्रेलिया, न्यूजीलेंड और इटली मे काफी लोकप्रिय है, हमारे देश मे अच्छे ग्लेमर से भरे विज्ञापन देखकर के केएफ़सी (KFC) और मेकडोनाल्ड के तथाकथित क्रिस्पी’ popcon – chicken नामक मांस के पकौड़े शाकाहारी लोग भी खाने लगे है यह माल का नहीं, विज्ञापन और कंपनी की मिलीभगत का कमाल है । लोगो को मांसाहार की और खींचने का षड्यंत्र । मैंने कई शाकाहारियों को अक्सर मुंबई मे देखा है ये मेकडोनाल्ड, केएफ़सी, सबवे के लुभावनेचिकन टिकी और केएफ़सी पोपकोर्नखाते हुए । हैरत की बात है की कई लोग आश्चर्य जताते है की ये शाकाहारी पदार्थ नहीं हैं ।

यूरोप का सबसे सस्ता और लोकप्रिय खाना है sausage जो सूअर के मांस और आंतों से बनाया जाता है मांस को बारीक पीस करके उसे आंतों मे भरकर के भूनकर या कही कही उबाल कर खाया जाता है ।

इसके अलावा बेकन, ब्लेक पुडिंग, अतड़ियाँ का मुख्य रूप से खाद्य व्यवसाय होता है

सूअर के मांस से कुछ अम्ल का उत्पादन होता है जैसे सोडियम इनोसिनेट :

सोडियम इनोसिनेट : सोडियम इनोसिनेट अम्ल (E631) एक प्रकृतिक अम्ल है जो औद्योगिक रूप से सूअर के मांस या मछली मे निकाला जाता है

 उत्पादन :

यह जलीय जीवों से उत्पन्न किया जाता है जैसे आंशिक रूप से मछली से ।

शराब बनाने मे जिस खमीर का प्रयोग होता है उससे

सूअर की चर्बी या मांस से ।

गुण : स्वाद को बढ़ाने मे, इनोसिनिक और इनोसिनेट मे उमामी स्वादनहीं होता लेकिन यह बाकी व्यंजन को निखारता है चाहे नमक की मात्रा हो या ना हो ।

उत्पाद : यह अम्ल कई खाद्य पदार्थो मे प्रयुक्त होता है

कई दैनिक भोज्य पदार्थो मे इसका प्रयोग होता है

 12 सप्ताह से कम बच्चो को दिये जाने वाले खाद्य पदार्थो मे यह अम्ल की मात्रा बिलकुल नहीं होनी चाहिए !

बाजार मे मिलने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आलू चिप्स एवं नूडल्स मे इस अम्ल का उपयोग उत्पाद का स्वाद बढ़ाने मे होता है । नूडल्स के साथ मिलने वाले टेस्टमेकर पर कुछ लिखा नहीं होता है की उसमे कौनसा पदार्थ का उपयोग हुआ है क्या आपने इस बात को सोचा ? क्या खा रहे है आप ?

अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनीयां टूथपेस्ट बनाने मे इसका इस्तेमाल करती है

अधिकतर बहुराष्ट्रीय कंपनीयां दाढ़ी की क्रीम बनाने मे इसका उपयोग करती है ।

इसके बिना चुइंगम बनाना मुश्किल है और वो सस्ती चुइंगम तो कभी नहीं बन सकती बिना मांस की चर्बी से बनाए गएँ E631 से ।

जानवरो से प्राप्त E631 कम लागत का होता है । अधिकतर E631 जानवरो से ही प्राप्त होता है ।

 दुष्परिणाम : जिन लोगो को गठियाँ और स्वास संबंधी रोगो और अस्थमा की शिकायत है उन्हें इस अम्ल के बने पदार्थो से बचना चाहिए ।

सूअर के मांस खाने वाले और सूअर की खेती करने वाले प्रमुख देश है (आकड़ें2007)

देश सूअर की अनुमानित

संख्या (मिलियन)

चीन 425

अमेरिका 71

ब्राज़ील 35.5

जर्मनी 27.1

वियतनाम 26.1

स्पेन 26

आहार प्रतिबंध : इनोसिनेट सामान्यतः जानवरों की चर्बी से प्राप्त किए जाते है आंशिक रूप से मछलियों से भी प्राप्त होता है । इस प्रकार शाकारियों के लिए इस अम्ल के बने पदार्थ उपयुक्त नहीं है मुस्लिम, यहूदी धर्म के लोगो इससे बने पदार्थों को अस्वीकार करते है क्यूँ की औद्योगिक रूप से यह अम्ल सूअर की चर्बी से प्राप्त होता है

निष्कर्ष : अक्सर कहा जाता है की उमामी स्वादकृतिम रूप से बनाएँ गए E-631 मे नहीं मिल पाता, अक्सर कंपनियाँ अपने ग्राहको को बताती है की उनके e-631 का निर्माण सूअर की चर्बी से नहीं हुआ है रासायनिक प्रक्रिया से उत्पन्न हुआ है, लेकिन मुख्य रूप से इसका स्रोत सूअर की चर्बी है, उत्पादक अपने उत्पादों पर लेबल नहीं लगा सकते की उक्त उत्पाद मे सूअर की चर्बी से निकाले गएँ उक्त अम्ल का प्रयोग हुआ है क्योंकि खाने वाले ग्राहक पता नहीं कौन है शाकाहारी या मासाहारी । सूअर की चर्बी से प्राप्त किए गए इस इनोसिनेट अम्ल की लागत काफी कम आती है अतः औद्योगिक रूप से मुख्यतः यह अम्ल सूअर की चर्बी से ही प्राप्त होता है ।

अक्सर आपने देखा होगा की इन कंपनीयों की वैबसाइट पर कंपनियों द्वारा विभिन्न डिस्क्लेमर लिखे रहते है या यह लिखित प्रमाण दिखाया जाता है की की हमारे उत्पाद जानवरों की चर्बी से रहित हैं । मान लो अगर एक कंपनी का कारोबार 200 – 500 – 1000 करोड़ तक है तो उसे कोई परेशानी नहीं होगी लोगो को बेवकूफ बनाने मे । क्या वह सच बताएगी लोगो को ? भारी मुनाफा ऐसे ही नहीं मिलता आजकल, वैसे भी रिश्वत खाने वाले मीरजफर और जयचंद बहुत है भारत मे, बच जाती है ऐसी कंपनियाँ जैसे 2004 मे कोक पेप्सी बच गई थी शरद पवारों और के हाथो । अगर विदेशी भारत मे हमें लूट सकते है तो वे सब कुछ कर सकते है जो उनके कमाने के आड़े आएगा

अम्ल (खाद्य) E – कोड उत्पादन उपयोग

 Disodium Guanylate E627 सुखी मछलियाँ, समुंद्री सिवार ग्लूटामिक अम्ल बनाने मे

 Dipotassium guanylate E628 सुखी मछलियाँ स्वाद बढ़ाने मे

 Calcium guanylate E629 जानवरो की चर्बी स्वाद बढ़ाने मे

 Inocinic Acid E630 सुखी मछलियाँ स्वाद बढ़ाने मे

 Disodium inosinate E631 वृहद मात्रा मे सूअर, मछली चिप्स, नूडल्स में चिकनाहट देने एवं स्वाद बढ़ाने मे

इन सबके अलावा हमारे दैनिक जीवन मे घरेलू वस्तुओं मे जानवरो के जीवन और खून का कितना योगदान होता है लिपिस्टिक बनाने मे गाय के मस्तिष्क का उपयोग होता है सौन्दर्य प्रसाधन मेकअप का सामान बनाने की बहुत सी सामाग्री चीन मे जानवरो से सस्ती दरो पर बनाकर के अमेरिकी कंपनियों को एक्सपोर्ट की जाती है फिर अमेरिका से भारत आती है शीत प्रदेशों के जानवरो के फर के कपड़े, जूते, बेल्ट इत्यादि भी बनाएँ जाते है चीन सबसे बड़ा फर उत्पादक देश है फर प्राप्त करने के लिए जानवर की पूरे शरीर की चमड़ी सबूत शरीर से निकाली जाती है 5-10 घंटे जानवर खून से लथपथ तड़पता रहता है । तब जाकर जानवर से मखमली / फर कोट तैयार र्होते है जिनका उपयोग फेशन उद्योग मे भी बहुत होता है !

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