Friday 18 November 2011

ग़रीब मुसलमानों के बारे में जो सच्चाई

ग़रीब मुसलमानों के बारे में जो सच्चाई है, वह कलेजा दहला देने वाली है. ग्रामीण इलाक़ों में ग़रीबी रेखा के नीचे वाले 94.9 फीसदी मुसलमानों को मुफ्त अनाज नहीं मिल रहा है. सिर्फ 3.2 फीसदी मुसलमानों को सब्सिडाइज्ड लोन का लाभ मिल रहा है. स़िर्फ 2.1 फीसदी ग्रामीण मुसलमानों के पास ट्रैक्टर हैं और स़िर्फ 1 फीसदी के पास हैंडपंप की सुविधा है. शिक्षा की स्थिति और भी खराब है. गांवों में 54.6 फीसदी और शहरों में 60 फीसदी मुसलमान कभी किसी स्कूल में नहीं गए. पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की संख्या 25 फीसदी से ज़्यादा है, लेकिन सरकारी नौकरी में वे स़िर्फ 4.2 फीसदी हैं. जबकि यहां वामपंथियों की सरकार है, फिर भी राज्य की सरकारी कंपनियों में काम करने वाले मुसलमानों की संख्या शून्य है. सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों में मुसलमानों की संख्या बहुत ही कम है. मुसलमानों की बेबसी का आंकड़ा जेलों से मिलता है. हैरानी की बात यह है कि मुसलमानों की संख्या जेल में ज़्यादा है. महाराष्ट्र में 10.6 फीसदी मुसलमान हैं, लेकिन यहां की जेलों में मुसलमानों की संख्या 32.4 फीसदी है. दिल्ली में 11.7 फीसदी मुसलमान हैं, लेकिन जेल में बंद 27.9 फीसदी क़ैदी मुसलमान हैं.

 मुसलमानों पर हुए सारे रिसर्च का नतीजा एक ही है. इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि सरकार के किसी भी विभाग में मुसलमानों की हिस्सेदारी जनसंख्या के अनुपात में नहीं है. प्रशासनिक सेवाओं में मुसलमानों की संख्या दयनीय है. देश में स़िर्फ 3.22 फीसदी आईएएस, 2.64 फीसदी आईपीएस और 3.14 फीसदी आईएफएस मुसलमान हैं. इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि सिखों और ईसाइयों की आबादी मुसलमानों से कम है, लेकिन इन सेवाओं में दोनों की संख्या मुसलमानों से ज़्यादा है. देश के सरकारी विभागों की हालत भी ऐसी ही है. ज्यूडिसियरी में मुसलमानों की हिस्सेदारी स़िर्फ 6 फीसदी है. जहां तक बात राजनीति में हिस्सेदारी की है तो यहां भी चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं. आज़ादी के साठ साल के बाद भी अब तक स़िर्फ सात राज्यों में मुस्लिम मुख्यमंत्री बन पाए हैं. हैरानी की बात यह यह है कि जम्मू-कश्मीर के फारुख़ अब्दुल्ला के अलावा देश में एक भी ऐसा मुस्लिम मुख्यमंत्री नहीं बन पाया, जो पांच साल तक शासन कर सका हो. राजनीति में मुसलमान हाशिए पर हैं, इस बात की गवाह लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की मौजूदा संख्या है. फिलहाल लोकसभा में 543 सीटों में स़िर्फ 29 सांसद मुसलमान हैं. सामाजिक पिछड़ेपन के साथ-साथ प्रजातंत्र के विभिन्न स्तंभों में भी मुसलमान हाशिए पर///////////

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