Friday 25 November 2011

माया 'राज' में एक और आइपीएस हुआ बागी !

लखनऊ उत्तर प्रदेश में डी डी मिश्रा केस के बाद यूपी के एक दूसरे आईपीएस अधिकरी अमिताभ ठाकुर ने वरिष्ठ अधिकारियों पर प्रताडना और व्यक्तिगत विद्वेष का आरोप लगाया गया है। अमिताभ ने कुंवर फ़तेह बहादुर, प्रमुख सचिव (गृह), विजय सिंह, सचिव, मुख्यमंत्री और अन्य पर स्वयं को एक लंबे समय से प्रताडित करने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही एक रिट याचिका इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ बेंच में दायर की है। इस रिट याचिका में अमिताभ ने कई मामले बताए हैं, जिनमे आरोप लगाया है कि उन्हें इन अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर व्यक्तिगत वैमनस्य के तहत परेशान किया जाता रहा है।
इसमें एक प्रकरण उन्हें स्टडी लीव नहीं देने का है जिसमे कैट, लखनऊ और हाईकोर्ट में आठ मुक़दमे दायर करने के बाद उन्हें आईआईएम लखनऊ में अध्ययन हेतु दो सालों का अध्ययन अवकाश मिल सका था। आइपीएस अमिताभ ठाकुर ने आरोप लगाते हुए कहा कि इस मामले में जहां अन्य आईपीएस अधिकारियों के मामले सौ दिनों के अंदर निस्तारित किये गए थे, वहीं मेरे मामले में कई सालों तक लटकाया गया था।

दूसरा मामला उनके एसपी गोंडा के रूप में निलंबन से सम्बंधित है जिसमे अमिताभ ठाकुर ने ये आरोप लगाया है कि इन अधिकारियों ने जानबूझ कर मामले को बहुत लंबे समय तक लंबित रखा था और अंत में चुनाव आयोग द्वारा कुंवर फ़तेह बहादुर को प्रमुख सचिव (गृह) पद से हटाये जाने पर मंजीत सिंह द्वारा प्रमुख सचिव (गृह) के रूप में 01 मई 2008 को न्याय करते हुए प्रकरण को तत्काल समाप्त किया गया था।

तीसरे मामले में अमिताभ ठाकुर आरोप लगाते हुए कहते हैं कि मेरे एसपी देवरिया के रूप में एक जांच के 25 मई 2007 को समाप्त हो जाने के बाद इन अधिकारियों द्वारा उसे विधि के प्रावधानों के विपरीत दुबारा 26 मई 2009 को प्रारम्भ किया गया था जिसे कैट, लखनऊ ने वाद संख्या 177/2010 में 08 सितम्बर 2011 के अपने आदेश में विधिविरुद्ध पाते हुए निरस्त करने का आदेश किया था।

चौथे मामले में अमिताभ ने मांग कि है कि उनके विरुद्ध कोई जांच लंबित नहीं होने के बावजूद उनको इन्ही अधिकारियों की शह पर डीआईजी के पद पर नियमानुसार प्रोन्नति नहीं दी जा रही है। इसी तरह उन्हें एसपी रूल्स और मैनुअल के पद पर जानबूझ कर तैनात किया गया जबकि यह अस्तित्वहीन पद है और यह विभाग शासन द्वारा अभी बना तक नहीं है।

अमिताभ ठाकुर ने बताया कि अपने सभी मामलों को सामने रखते हुए उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री को 10 जून 2011 एवं 16 अगस्त 2011, मुख्य सचिव को 04 अक्टूबर 2011, प्रमुख सचिव (गृह) को 15 जून 2009, 05 अगस्त 2011, 16 अगस्त 2011 एवं 31 अक्टूबर 2011 एवं पुलिस महानिदेशक को 25 जुलाई 2011 को कई पत्र प्रेषित कर उनके द्वारा लगाए गए आरोपों की जांच कराने और दोषी पाए गए अधिकारियों को दण्डित करने की मांग की गयी किन्तु इनमे से किसी पत्र का उत्तर प्रदेश शासन के अधिकारियों द्वारा कोई भी संज्ञान नहीं लिया गया। लिहाजा उन्हें अब बाध्य हो कर हाई कोर्ट से यह गुहार करनी पड़ी है कि उनके द्वारा अपने विभिन्न पत्रों में लगाए गए आरोपों की जांच करा कर कुंवर फ़तेह बहादुर, विजय सिंह या किसी भी अन्य अधिकारी को दोषी पाए जाने पर नियमानुसार दण्डित किया जाए। साथ ही उन्हें जांच के बाद तमाम मानसिक और सामाजिक प्रताडना के लिए समुचित रूप से क्षतिपूर्ति दी जाई।

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